Wednesday, September 8, 2010

मैं जात पात में, उंच नीच में , और फिकरो में बटी हुई...
जो धुंधला दे सच्चाई को दिल ऐसी गर्द से अटी हुई....
शिकवा नहीं जिस्म की माटी से , पर रूह भी अब बेताब नहीं....
तेरे हुक्म पे चलना एक तरफ , तेरा नाम भी लेना याद नहीं.......

Wednesday, August 25, 2010

.प्रिय...
सारी मुहब्बत ,सारे एहसास , लफ़्ज़ों में समां गए,
जब उनके ख्याल में कुछ लिखा हमने,
हवाओं से पता पूछा था,
चाँद से रौशनी मांगी थी,
उस राह क लिए
जो उनके घर जाती है,
बंद दरवाज़े पे छोड़ आये हैं हम
पैगाम अपना
दरवाज़े की झिरी से आती रौशनी के हाथ में
सलाम छोड़ आये हैं.
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तुम मेरी सबसे बड़ी शक्ति
और कमजोरी भी हो।
अकेलेपन में तुम्हारी यादों की तीस
जब मथती हैं तो अपना जीवन कितना कष्टप्रद लगता है
सच कहूँ तो आदत सी पद गयी है
रोज़ आँखें धुला कर सुलाती है तुम्हारी स्मृति.


लम्बे सफ़र में जाने कब शाम हो जाये
इसलिए यादो की चिरागों को जलाये रखते हैं ।

दूर रहते हुए भी गजब एहसास है करीब होने का
चाँद हम तो आपको पलकों में छुपाये रखते हैं ।

साथ गुज़ारे लम्हात की जुस्तजू में हम,
जुदाई की ज़ुल्मत को भी मिटाए रखते हैं।

ये तो बड़ी तोहफगी हुई आपकी यादों की,
ये आपकी नुमाइंदगी कर हमे ही बहलाए रखते हैं।

हम तो शाएरी बन गए हैं शाएर चाँद के
जो हमे शामो सहर जेहन में बसाये रखते हैं।

नज़रें मिलेंगी आपसे तो ज़मीन पे जन्नत उतर आएगा,
फिल हकीक़त है ये , इसलिए तो नज़रें झुकाए रखते हैं.

Tuesday, August 24, 2010

मेरे सपने में वो आयी
इठलाती बलखाती लो मुझे देख मुस्काई,
चन्दन सा वह गौर बदन, सरस सुमधुर बांकी चितवन ,
चेहरे की छटा का क्या कहना जैसे दिव्य ज्योति का जलना,
बालों में घटा लहराई थी हर और खुमारी छाई थी।
सपने में उसे देखा मैंने , बस नयन खुले और बोल पड़े ...
" रे दुष्ट! तू चाहता है क्या?
क्यूँ मुग्ध मुझे देखा करता?
तू समझ मुझे नहीं पायेगा।
सब खो के यहीं रह जायेगा"....
विस्मित सा मैंने सब देखा, संकोच छोड़ मैं बोल पडा
"मैं नहीं मुग्ध तेरे नयनो पे , हैं वे ही मुझे छेड़ा करते".....
प्रेम नहीं होता परिभाषित
रहता मात्र नयन में ,
मन वंतर संवत्सर वत्सर
कब बंधते लघु क्षण में
रहते सभी अनाम - न कोई कभी पुकारा जाता ,
रह जाती अभिव्यक्ति अधूरी ,
जीवन शिशु तुतलाता !!!!!!!

Monday, July 26, 2010

गाय के कच्चे दूध जैसे सादा हम....
और हमारे नीले नीले रिश्तेदार!!!!
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सर्पदंश का नीलापन तो सह्य है , स्वीकार भी...
पर स्म्रितिदंश का पीलापन???????
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कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है,
प्यास बुझती नहीं की बरसात गुज़र जाती है.......
अपनी यादों से कह दो की यूँ न आया करे,
नींद आती नहीं की रात गुज़र जाती है.....