Wednesday, May 11, 2011

कहते हो नफरत है तहरीर से मेरे ....
फिर क्यूँ सजा रखे हैं तुमने ,
किताबों  की तरह..........
....................खतों को मेरे??? 

Friday, May 6, 2011



 बह रहा है पूर्वजो का रक्त मुझमे वास्तव में,
मानती थी मैं
स्वयं औरों को मनाने के लिए जाती समय पर.
मैं पृथक हूँ सभी से!

रे! उन्होंने तो लखा संकीर्ण स्वार्थी दृष्टि से
और सब हो गया उल्टा!
उनके निकट कुछ भी-
धन मान  योवन नहीं रक्षित! 

आज मैं जब हो रही कुछ कुछ व्यवस्थित
उन्ही के स्थान पर, और ह्रदय प्रेरणा देती लुभाती , कंपकंपाती
वृत्तियाँ निज देखती हूँ
तब प्रतिक्षण प्रश्न बस यह उठता 
क्या प्रीथक हूँ सभी से ?
पूर्णतः और सत्य ही! 

चल रही क्या नहीं मैं भी उन्ही के चरण चिन्हों पे?
प्रश्न उठते ही निरंतर जागता है 
गहन विश्वास!
खोखले मम - प्रश्न को
प्रतिध्वनित करती
चल रही नहीं  क्या मैं भी चरण चिन्हों पे उन्ही के!
बह रहा है रक्त आज भी पूर्वजो का मेरे, मुझमे!