जैसे हवा में अपने को खोल दिया इन फूलों ने,
आकाश और किरणों और झोकों को सौंप दिया है अपना रूप.
और उन्होंने जैसे अपने में भर कर भी इसे छुआ तक नहीं है..
ऐसा नहीं हो सकता क्या तुमसे मेरे प्रति?
नहीं हो सकता शायद ....
और इसी का रोना है..
या ऐसा भी किसी दिन होना है?
तुम्हारे वातावरण में मैंने डाल दी है कई बार अपनी आत्मा!
तुमने या तो उसे अपने अंक में ही नहीं लिया या..
इतना अधिक भींच लिया है,
जितना तुम्हे न पा सकने पर जीवन को छाती तक खींच लिया है.....
क्यूँ नहीं रह सकते हम परस्पर
फूल और आकाश की तरह?
यह नहीं हो सकता शायद, और इसी का रोना है...
या ऐसा भी किस दिन होना है?