Sunday, February 19, 2012
Thursday, February 16, 2012
Wednesday, February 15, 2012
Thursday, February 9, 2012
तुम्हारा प्रेम, लबालब!
एक मौसमी 'नाले' की तरह...
जो उफनता है बरसात आने पर..!
मेरा प्रेम, इक 'नदी' की तरह
हर मौसम में एक सा बहाव
एक सी दिशा...!
प्रचंड गर्मियों में जब सूखता है जल पृथ्वी से...
तब मुझमे नदी की लकीर ,
और निश्छल चमकीली रेत ही दिखती है..
और तुम्हारे भीतर दिखती है गंदगी
और सड़ी हुई मिटटी
वासना की!!
Wednesday, February 8, 2012
Tuesday, February 7, 2012
बचपन में माँ बहुत कहानियां सुनाया करतीं थीं... बहुत सारे कभी कभी तो एक ही कई कई बार...! १० साल पहले एक राजस्थान की लोक कथा सुनाई थी उन्होंने . ठीक ठीक याद नहीं पर कहानी कुछ यूँ थी....
" एक राजा का दिल खूबसूरत सी पनिहारिन पे आ जाता है,जो उस से उम्र में काफी छोटी थी. राजा उसे घर ले आता है. और रानियों कि तुलना में उसका ज्यादा ध्यान रखता है.(ख्याल रहे ,पहले रानियों की 'संख्या'को 'स्टेटस सिम्बल' से जोड़ा जाता था).
फिर भी उसे हमेशा ये डर लगा रहता था कि कहीं ये उसे छोड़ के भाग न जाए..! तो एक मित्र की सलाह से उसने सुनार बुलवा के एक जड़ाऊ भारी सी "झांझ' उसके पैरों में डलवा दी ताकि कहीं भी आने जाने से उसकी आवाज़ कान में पड़ती रहे. पनिहारिन भी खुश कि राजा मुझे इतना प्यार करते हैं कि इतनी कीमती चीज़ मुझ गरीब को दी है... इसलिए चलने में कठिनाई होने पर भी वो कुछ न कहती..!
समय बीतता गया अब राजा को यकीन हो गया कि पनिहारिन उससे बड़ा प्रेम करती है. इतने भारी जेवर से लडखडाती भी है तो उफ़ तक नहीं करती, अब ये उसे छोड़ कर न जायेगी.... सो उसने वापस सुनार को बुलवा के झांझ उतरवा दिया...!!
दूसरे दिन पनिहारिन राजमहल से गायब!! भाग गयी...!!!
... कुछ दिनों बाद एक बांदी ने उसे गांव में देखा अपनी सहेली से वो कह रही थी..." अरी! राजा ने तो बड़ा प्रेम किया मुझसे...इतनी कीमती झांझ जाते ही दी,.... बड़ा भरोसा था.. और एक दिन उसका भरोसा कैसे खत्म हुआ री, कि मेरी पाजेब उतरवा ली??"
"क्या यही प्रेम था सखी?"
"......." ................ कहानी खत्म...!!!!!!
किसी को यकीन हुआ.... किसी का भरोसा टूटा!!!!!!
आपको????
" एक राजा का दिल खूबसूरत सी पनिहारिन पे आ जाता है,जो उस से उम्र में काफी छोटी थी. राजा उसे घर ले आता है. और रानियों कि तुलना में उसका ज्यादा ध्यान रखता है.(ख्याल रहे ,पहले रानियों की 'संख्या'को 'स्टेटस सिम्बल' से जोड़ा जाता था).
फिर भी उसे हमेशा ये डर लगा रहता था कि कहीं ये उसे छोड़ के भाग न जाए..! तो एक मित्र की सलाह से उसने सुनार बुलवा के एक जड़ाऊ भारी सी "झांझ' उसके पैरों में डलवा दी ताकि कहीं भी आने जाने से उसकी आवाज़ कान में पड़ती रहे. पनिहारिन भी खुश कि राजा मुझे इतना प्यार करते हैं कि इतनी कीमती चीज़ मुझ गरीब को दी है... इसलिए चलने में कठिनाई होने पर भी वो कुछ न कहती..!
समय बीतता गया अब राजा को यकीन हो गया कि पनिहारिन उससे बड़ा प्रेम करती है. इतने भारी जेवर से लडखडाती भी है तो उफ़ तक नहीं करती, अब ये उसे छोड़ कर न जायेगी.... सो उसने वापस सुनार को बुलवा के झांझ उतरवा दिया...!!
दूसरे दिन पनिहारिन राजमहल से गायब!! भाग गयी...!!!
... कुछ दिनों बाद एक बांदी ने उसे गांव में देखा अपनी सहेली से वो कह रही थी..." अरी! राजा ने तो बड़ा प्रेम किया मुझसे...इतनी कीमती झांझ जाते ही दी,.... बड़ा भरोसा था.. और एक दिन उसका भरोसा कैसे खत्म हुआ री, कि मेरी पाजेब उतरवा ली??"
"क्या यही प्रेम था सखी?"
"......." ................ कहानी खत्म...!!!!!!
किसी को यकीन हुआ.... किसी का भरोसा टूटा!!!!!!
आपको????
Monday, February 6, 2012
बीते वक्त में जा कर जब यादों के धागे उलझते हैं, तब बहुत सी बातें जेहन में उतरती हैं...!
अल्हड मन रिश्तों के फलसफे समझने की कोशिश में है..!!.एक तरफ जीवन मृत्यु के जुड़े मसले.. दूसरी तरफ तुम्हारी यादें..और मेरे ख्वाब!!
रेत की तरह फिसल रही मेरे खवाबों की ताबीर...!! दिल कहता है एक बार जी ही लूँ इन लम्हों को... शायद वक्त मिले न मिले...!
खुदा ने चाहा तो बदल ही देगा मेरी तकदीर!!!!
अल्हड मन रिश्तों के फलसफे समझने की कोशिश में है..!!.एक तरफ जीवन मृत्यु के जुड़े मसले.. दूसरी तरफ तुम्हारी यादें..और मेरे ख्वाब!!
रेत की तरह फिसल रही मेरे खवाबों की ताबीर...!! दिल कहता है एक बार जी ही लूँ इन लम्हों को... शायद वक्त मिले न मिले...!
खुदा ने चाहा तो बदल ही देगा मेरी तकदीर!!!!
एक कहानी तो हम सब ने सुनी ही है.. जब कृष्ण ने माटी खायी और यशोदा ने उनका मुख खुलवाया तो मुख में सारा ब्रह्माण्ड.. ग्रह नक्षत्र आदि दिखे. और प्रतिक्रिया में यशोदा मूर्छित हो गिर पड़ीं. मैं क्या प्रतिक्रिया दिखाती.. सोच में हूँ..!
हुआ यूँ कि आज मेरे बेटे ने कुछ खाया.. मैंने उसके होठों पे काली भूरी कोई चीज़ लगी देखी तो पूछा "क्या खा रहा है.. मूह खोल"... थोड़ी देर आनाकानी के बाद उसने मूह खोल कर दिखाया और चिल्लाया ..."आ आ...आ...."गूगल"!!!
दरअसल मूह में थी तो चाकलेट, पर मैं सोच में पड़ गयी कि क्या सचमुच आज "गूगल" पर्याय हो गया है "ब्रह्माण्ड" का?
हुआ यूँ कि आज मेरे बेटे ने कुछ खाया.. मैंने उसके होठों पे काली भूरी कोई चीज़ लगी देखी तो पूछा "क्या खा रहा है.. मूह खोल"... थोड़ी देर आनाकानी के बाद उसने मूह खोल कर दिखाया और चिल्लाया ..."आ आ...आ...."गूगल"!!!
दरअसल मूह में थी तो चाकलेट, पर मैं सोच में पड़ गयी कि क्या सचमुच आज "गूगल" पर्याय हो गया है "ब्रह्माण्ड" का?
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