Friday, March 30, 2012

ताजगी तो वही है जो दौड़े मौजे-निशां बन रगों में तुम्हारे..
.....सिर्फ आरजो-लब को रंगे वो ताजगी, ताजगी कहाँ......!

हो वही रौशनी भी जिस से हो दिलो- दिमागे बेशर दरकशा..
सिर्फ दरों दीवार ही रौशन हो, वो रौशनी, रौशनी कहाँ....!

...और जिंदगी भी वही जिसमे हो जिंदाबाद इश्क तेरा.....
जहाँ तेरी नामौजूदगी का खौफ, वो जिंदगी, जिंदगी कहाँ.....!!!
रश्मि मिश्रा के अनमोल वचन.....!
"दोस्तों , किसी लड़के /लड़की को प्रपोज करना है तो इस रविवार का समय उत्तम है... वो क्या है कि इस दिन मूर्ख दिवस कहते हैं .. यानि कि 'फूल डे'...(१ अप्रैल)!!
तो इस दिन अगर आप प्रस्ताव रखते हैं तो सेफ हैं! वो ऐसे कि अगर एक्सेप्ट कर लिए जाते हैं तो बढ़िया.. नहीं तो कह दीजियेगा कि ,'यूँ ही मजाक कर रहा था /रही थी .. आप तो बुरा मान गए .. तारीख क्या है आज?' 
जनाब देर न करियेगा इस दिन जूते/सैंडिल न पड़ेंगे पक्का..! काम बना तो ठीक वरना भाई/बहन बना लीजियेगा! चलता है यार"!!!!

Monday, March 26, 2012

"इक हम हैं जो बैठे ही हैं मुसीबतें झेलने को...
और जो तुम हो कि , बैठे हो सिर्फ आफतें ढाने को...!!" 

Saturday, March 24, 2012

एक आदमी किसी अपरिचित नगर में पहुँचता है.. जहाँ की न तो भाषा आती है उसे, न चाल चलन की जानकारी..! भूखे प्यासे भटकते हुए एक  महल के द्वार पे पहुचता है.. जहाँ संभवत: कोई भोज चल रहा है सोच दाखिल होता है... सभी बैठें है भोजन पर सो उसने भी बैठ के तरह तरह के पकवान खाए... वो एक होटल था.. !खाने के बाद जब बैरा बिल ले के आया तो उसने सोचा कि शायेद इस महल के राजा ने धन्यवाद पत्र भिजवाया है.. बिल को जेब में रख वह प्रत्युत्तर में झुक झुक के आभार प्रकट करता है कि 'मुझ जैसे अजनबी का सम्राट ने इतना स्वागत किया.. अपने देश जा के खूब प्रशंसा करुंगा ..!' बैरा कुछ न समझा तो उसे पकड़ के मैनेजर के पास ले गया... आदमी और प्रसन्न कि लगता है प्रतिनिधि मेरे धन्यवाद से  खुश हो  बड़े अधिकारी के पास ले आया. खूब खरी खोटी सुनने के बाद भी वह धन्यवाद दिये जा रहा है.
अब उसे अदालत में ला खड़ा किया गया तो उसकी खुशी  और बढ  गयी उसने सोचा कि अब वह सम्राट के पास आया गया है.. और वहाँ भी उसने देश कि प्रशंसा  में कसीदे काढे... कि वह अभिभूत है यहाँ आ के.. उसकी खुशी का ठिकाना नहीं...!  जज ने इसे चालबाज ठहरा के गधे पर उल्टा बिठा नगर घूमाने का आदेश दिया...!
साथ में एक  तकथी भी लटका दी गयी कि"ये आदमी चालबाज़ है...जिसके सामने से ये गुज़रे इसे भरपूर गालियाँ दो"..
अब तो उस आदमी के पैर न थे ज़मीन पर उसे लगा कि उसकी शोभा यात्रा निकाली जा रही है एवं लोग इसकी प्रशंसा में गीत गा रहे हैं..! वह गदगद सपने बुनने में  व्यस्त कि देश जाके अपनी कहानी सुनाएगा.. अगर कोई देखनेवाला भी रहता तो बड़ा मज़ा आता...!
अचानक उसके देश का एक परिचित दीखता है वह चिल्लाता है." देख! मेरा कितना स्वागत हो रहा है.."
वह आदमी भाग जाता है कि उसे पता है क्या हो रहा है... और ये मूर्ख यही कहता है..."उफ्फ्फ कैसे मुझसे जल के भागा वह अभागा.."!!!

(अहंकार में डूबे लोग ऐसे ही भ्रांतियों  के शिकार होते हैं. जिनका न जीवन के तथ्य से सम्बन्ध है न जीवन की भाषा मालूम... कोई ताल मेल नहीं जीने और जिंदा रहने का ....!)

Tuesday, March 20, 2012

आज देखना एक दिये को ध्यान से... देखना उसकी लौ..उसकी रौशनी,.. उसकी बाती, उसका तेल.... और उसकी जलन!!!!!!
देखना कैसे बाती.. तेल को जलाती है... सारे तेल को जला खुद जल जाती है...! बाती को लपट जलाती है.. और भभक के  अंत में बुझ जाती है... सारी  आग सारी जलन खतम... खेल खतम!!!

ह्म्म्म.....!!!
 पहली बात:  ये तर्क को दिखा रही है.. तर्क के कैसे इनकार होते हैं.. एक पर एक चीज़ इनकार  भरी.. 'ये नहीं..ये भी नहीं.. ये भी नहीं.. वो भी नहीं...' अंतत: सारे इनकार के बाद तर्क खुद मर जाता है.. अब कुछ नहीं इनकार को!!

दूसरी बात:  विश्वास को दिखाती है..!! यहाँ स्वीकारोक्ति सी दिखती है...विश्वास कि स्वीकृति .. ' ये सही.. हाँ, ये भी सही... ये भी और वो भी...'  सब स्वीकार है..! अब विश्वास की भी ज़रूरत नहीं...!

अब सोचिये जहाँ तर्क और विश्वास दोनों गिर गए तब क्या बचा?????
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.क्या यहाँ प्रेम है?????

Saturday, March 17, 2012

देखो तनिक न दुखइयो मोरी कलईया
श्याम तनिक न दुखइयो , मोरी कलईया  रे...
सुघड़ गोरी मोरी बहियाँ...!

सब सखियाँ मिलि घेर के बैठीं
बीच भये बनवारी....
आपन  आपन देत कलाइयाँ
सखियाँ बारी बारी...
हंस हंस बात  करे सबसे
वृंदा-विपिन -बसईया रे...
चित्त ले गया सावरा कृष्ण कन्हैया रे...!

सब में मोरी पहचान कलाई
धरे कन्हाई कस के..
छोटी सी चूड़ी पहनावे
बांह दबावे कस के!
मैं तो रोवन लागी कह के मईया मईया रे...
चित्त ले गया सावरा कृष्ण कन्हैया रे...!
सुघड़ गोरी मोरी बहियाँ... !

टूट के चूड़ी  हाथ  में गड़ गयी..
डरन  लागे बनवारी...
झट से मोरी छोड़ कलईया
भाग गए बनवारी!
इधर मैं भई दीवानी
उधर श्याम  दीवाना ....
मोसे ऐसे बात करन को
ढूढे रोज बहाना...
सब जन प्रेम की तोरी
करन लगे कवितईया रे ..!
जो चित्त ले गयो साँवरा कृष्ण कन्हैया रे...!सुघड़ गोरी मोरी बहियाँ... !

Monday, March 12, 2012

सबकुछ वही तो है पहले जैसा... सिर्फ रूप.. रंग.. ढंग... शैलियाँ बदल गयीं प्रेम की ... ! पर है तो शाश्वत ही.. जैसे आत्मा ने वस्त्र बदले..! जैसे नदी सागर में गयी... सागर किरणों से चढ़ कर मेघ बना...मेघ फिर बरसा नदी में और नदी सागर में!!
एक बूँद भी न खोयी ... जल उतना ही रहा जितना  सदा था ..!
मेरा प्रेम भी वैसा ही  रहा न..! कल तुम्हारे साथ मैं ही तो नाची थी वृन्दावन में ललिता के रूप में ...! मेरी वीणा में राग तो तुम्हारा ही बजा था जब मैं मीरा थी...! याद तो है न...???
"देखो, कृष्ण! प्रेम की न कोई विधि है न विधान"....! 
"तनिक सी दूरी से काहे घबराए जाते हो"...?
"अरे! मैं तो वही हूँ जिसने 'पांच हज़ार साल के फासले' से प्रेम किया था"......!!!!

Friday, March 9, 2012

जिन्होंने न देखी  है सूरत को मेरी
देखेंगे वो आज नंगे  बदन को...!
पति मेरे हारे हैं जुए में बाजी..
महलों की  रानी लुटी जा रही. है..!
खिंच न सका चीर , दुश्शासन जो हारा ..
सभा बीच भगवन है तेरा सहारा......!
साड़ी के धागों में तुम जा छुपे हो...
इसी से ये साड़ी बढ़ी जा रही है.........!!!

Monday, March 5, 2012

न जाने कहाँ तक फैली है तेरे हुस्न की वुसअत ...
....और, न जाने मेरे इश्क की परवाज़ क्या है....!

Friday, March 2, 2012


अजब रंग उनकी अदा के, हम तो बस परेशान रहे,
दिन में दिख रहे जो चाँद से, हर रात वे  आफताब रहे...!

पढ़ा भी बहुत लेकिन उन्हें पढ़ने में नाकाम रहे,
हर पन्ना रोज बदला जिसकी ऐसी वे किताब रहे..!

अब  मुकाम उनको मिल गया, क्यूँ छानते हम ख़ाक रहे,
है जवाब हर सवाल का.. पर वे तो  लाजवाब रहे..!!
जागती रही आँख इधर.. देखते वे ख्वाब रहे...........!!!!!

Thursday, March 1, 2012

चलो अँधेरी रात में सहर ढूंढते हैं..
नदी  की  रेत पर कोई लहर ढूंढते हैं..!

हर तरफ खड़ा है जो  ज़हर का हिमालय,
ज़हर काटने को चलो, ज़हर ढूंढते हैं...!

ओज़ोन का दरकना ठीक नहीं  है शायेद,
बचाने को चलो, कोई डगर ढूंढते हैं...!

क्या खबर होगी  कल के सूरज की ,
आज की खबर में चलो, खबर ढूंढते हैं..!