Friday, June 29, 2012

वो आज भी बैठी थी अपनी उलझी लटें बिखराए
गोद में नन्हे को बिठाये ,खोयी हुई..
घर-बार दरोबाम से उकताई हुई...
देख मुझे चौंक पड़ी....
आ.. अ.. आप...?
किसलिए आये हैं....?
क .. कैसे मुझे ढूँढा..?
ज .. जाइए जाइये...
आते होंगे वो ऑफिस से...
अजनबी को देख घबराएंगे 
जाने क्या सोचेंगे... मुझपे झुंझलाएंगे !

मैं चकित..
कुछ विस्मित...
अपना सर झुकाए हुए
सोचा , मैं तो बस अतीत का साया..
रुका झिझका कुछ सकुचाया..कि
वक्त ने सवाल पूछ ही लिया
-क्या तेरे शौक की वाराफ्ता मिजाजी है वही.. पहले सी..?
..............
..........
वक्त दम साधे देख रहा था मुझे कि,
रिसते छालों को एक बार और देखा मैंने...
मुस्कुराया...
और खुद को धकियाते हुए कहा...
'चल, आगे बढ़...'
!!!!

Thursday, June 28, 2012


इनायत , कि तुमने दर्दे दिल दिया है
तुम्ही को देते जायेंगे दुआएं...
भूल जातें है हर इक शै दुनिया की
बता, कि तेरी मुहब्बत कैसे भुलाएं....?


(उफ्फ्फ.. राह भी देखती रही थी आने का.. हज़ार शिकायतें लिए.. कि इस बार आओ तो ये कहूँ .. ये कहूँ.. वो कहूँ और वो कहूँ...! कितना रुलाया.. कितना सताया.. कितना जलाया... सोचा कि आओगे तो बोलूंगी भी नहीं..... !
तुम आ भी गए.. और मैं नाचने लगी.. भूल गयी सारी बातें.. शिकायतें... जो हुआ सो हुआ.. क्या छेड़ूँ उन बातों को इस मंगल घडी में....नाचने गाने कि घडी में...! रौशनी ज़रा सी मिली तुम्हारी मन रौशन हो गया....

.."होता है ऐसा..")

मुझे लौटा दो मेरा वो चेहरा खोया हुआ....
होठ रख मैं उन होंठों पे सो जाउंगी
जिनको चूमे हुए बरसो बीत गए!
रूह में सुर्खिये- लब घुल के उतर जायेगी
सुबह अनफास के निकहत में बस जायेगी
पांव उठेंगे उसी शहर की जानिब 
कि जहाँ मेरे दिल ने धडकना सीखा था...!
लौटा दो,
इसके पहले कि मिले वक्त को हुक्मे-रफ़्तार...
लौटा दो वो मेरा चेहरा खोया हुआ .....!

Wednesday, June 27, 2012

नहीं निकालती मैं चलते हुए तलवों से कांटे चुन चुन कर
.....मंज़ूर नहीं चलना अब यूँ बचकर, झुककर , रूककर...!

खाओगे जिस दिन सूखी  रोटी ही परिश्रम कर - थककर
तृप्ति देने आउंगी मैं ,बन तेरे लोटे का ठंडा जल....!

Saturday, June 2, 2012

आप जानते हैं भगवन शिव और विष्णु के पुत्र को? चौंक गए ना? हाँ हम भी ऐसे ही चौंके थे जब ये सुना ... बात ये है कि विष्णु ने जब मोहिनी का रूप धरा था तो शिव जी ने इनका वरण किया.. इनकी एक संतान भी हुई "अयप्पा स्वामी".. इन्हें हम हरी-हर पुत्र भी कहते हैं...!
हाँ... सिर्फ कुंती ने ही अपनी संतान कर्ण को प्रवाहित नहीं किया था... इन्होने भी( शिव जी- विष्णु जी) अपनी संतान अयप्पा को नदी में प्रवाहित कर दिया... ! राजशेखर नामक राजा को ये संतान मिली... जिनका पालनपोषण अपने पुत्र की तरह किया.. बाद में इनकी भी एक संतान हुई थी...! जब राजशेखर को अयप्पा मिले थे तब इनके गले में दिव्य मणि थी जिनकी वजह से इनका एक नाम "मणि-कंटन" भी है...!
शास्त्र- शस्त्र में पारंगत अयप्पा अपनी माता को प्रिये ना थे... राजतिलक के समय रानी ने इनके कठिन काम यानी शेरनी का दूध लाने हेतु वन में भेज दिया ताकि इनके पुत्र को राज मिले... (अकेली कैकेयी ही ना थीं ऐसी....) जहाँ उन्होंने महिषासुर कि बहन महिषी का वध किया और शिव कृपा से शेरनी का दुग्ध ला सौंप दिया.. छल की बात पता चलने से महल छोड़ वन में चले गए...!
राजशेखर के बुलाने पर भी वापिस ना आये... और स्वर्ग कि और रुख किया...
उनके नाम एक मंदिर का निर्माण हुआ केरेला के सबरीमाल में . जहाँ मूर्ती कि स्थापना स्वयं परशुराम ने किया.. सबरीमाल आज दक्षिण के प्रसिद्द तीर्थों में है...!
इन सब बातों में मज़े कि बात.. हम प्राय: अयप्पा स्वामी के मंदिर में जाते रहे हैं पिछले पांच वर्षों से.. और स्टोरी आज पता चली.. कि अयप्पा स्वामी कौन थे...!
बस मांगने को अपने हाथ फैलाते रहे
सिर्फ अपनों की खैरियत ही मनाते रहे
भरती गयीं जेबें, रीतते गए मन..!
फिर दुश्मन फायेदा उठाएगा
हमारी गनों का रेंज आधा रह जायेगा
हमारे जहाज पृथ्वी से उठने में देर लगाएंगे
हम पूरी ताकत से फिर कैसे लड़ पाएंगे?
जब शंखनाद होगा 'उस युद्ध 'का.......!

Friday, June 1, 2012


केशव,
तुम तो सारथी हो सदा के
और रहोगे भी
किन्तु सखा.!
ये नहीं भूलना .
मेरे लिए एक ही महाभारत बहुत हुआ...
अगली पारी में कोई और पार्थ लाना...!!