Wednesday, October 23, 2013

इंडीसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वुमन प्रोहिबिशन एक्ट १९८६ में संशोधन कर महिलाओं की अश्लील फोटो वाले विज्ञापन और होर्डिंग्स लगानेवाले पर पचास हज़ार से पांच लाख जुर्माना और पांच वर्ष की कैद!
.........और साथ में महिलाओं के अश्लील मेसेज (SMS) भेजने और मेसेज जारी करने वाले को जेल की हवा खानी पड़ेगी.....! पहली बार दोषी पाए जाने पर तीन साल की कैद और पचास हज़ार जुर्माना.. तथा दूसरी बार दोषी पाए गए तो पांच साल की कैद और एक से पांच लाख रूपए जुर्माना हो सकता है...! (लेडीज़ अब आप इसका सदुपयोग करें.. निकटतम पुलिस स्टेशन में मेसेज दिखाएँ)

इसे कहते हैं हल्ला बोल.... अब तो ऑंखें खोल.... अधिकार के लिए बंद मुंह खोल.....!
वह कौन है जो सतत जवाबदेही की सूली पर टंगी है? सदियों से इसी तरह, इन्ही अदालतों के बीच उधड़ी खड़ी है? सभी प्रश्नों के जवाब उसे ही क्यूँ देने हैं?
और भी तो अभियुक्त रहे होंगे इस बहुपरती मुक़द्दमों के? कुछ और भी बयानात ज़रूरी होंगे इस घटते क्रम के? एक उसी के सर पे औंधा आकाश क्यूँ पड़ा है?

......................

"स्त्री होने की परिणति है अपने से ही लड़ना... जूझना! अपनी निष्ठा को साध्वी सिद्ध करने के लिए हर घडी पंजो पे खड़े रहना.... और कभी कभी अंधड के थम जाने की प्रतीक्षा करना या फिर.... एक कुंड से निकल कर दुसरे में लिथड़ने लगना....."
........ शाम के धुंधलके में , गली में मेरा हाथ पकड़ कर तुमने इक चाँद का टुकड़ा मेरी हथेलियों पे रख बंद कर दिया.... 
मैंने पूछा, "क्या है ये"?
तुमने कहा, "मुहब्बत........"!

और बहुत तेजी से तुम चले भी गए........... ये तो कल ही की बात थी !!
.....तीसरी मंजिल की वही खिड़की मैं खोल के रखती हूँ जहाँ से चाँद मेरे सिरहाने तक आता है....

सुनो, मैंने चाँद को आज कह दिया है कि जब तक तुम न आ जाओ वो यूँ हीं मेरी खिड़की से आया करे और तुम्हारी खुशबू मेरे कमरे में बिखेरता रहे......!
तुमने मुझे रहस्यों में क्यूँ खोजने की कोशिश की? तुम्हे पता भी न चला कि इस कदर तुम खो गए कि खुद रहस्य बनते गए.... और मैंने जब तुम्हे निकालने की कोशिश की, जगाने की कोशिश की तो नाराज़गी ही दिखाई तुमने.... जताया भी कि मैं कौन होती हूँ तुम्हे समझाने वाली....!
तुम्हारे तर्क ही आते गए बीच में.... तुम्हारी सोच, बुद्धि समझ ... मुहब्बत सब डूबते गए...
खुद अपने मन की चिता जलाई तुमने, और उस 'चिता' पर मुझे लिटा दिया.....!
क्यूँ.....??
क्या खोज नहीं सकते थे अपने ही भीतर कहीं मुझे?
कि तेरी ही महक थी मेरे अश्कों मे भी, जो
मेरे रोने पे दुश्मन ने कंधा दिया अपना...
तीन चीज़े परमात्मा हाथ मे हैं, जन्म- मृत्यु और प्रेम! परमात्मा यानी समग्र. बाकी आपनी 'आईडेनटीटी', 'जॉब', 'सैलेरी', 'रिश्ते- नाते' सब भरावा है जीवन के, 'फिलर्स' हैं ये सब.
और ज़रूरी नहीं कि जो लोग प्रेम-गीत गा रहे वो प्रेम मे ही आकंठ हों. शायेद जो जीवन मे नहीं मिलता गीत गाकर खुद को समझा लिया जाता है. 
कभी -कभी प्रेम करते मालूम लोगों ने 'इंतजाम' भर ही किया है, जहाँ सुगंध नहीं आती , उनके जीवन से 'घृणा' और वैमनस्य की दुर्गन्ध भर ही आती है.
एक क्षणिक घटना है प्रेम, मृत्यु जैसे. बस यहाँ अहंकार मरता है और आत्मा आविर्भूत होती है.
-प्रेम आकस्मिक है क्रांति जैसे, 'रिवोल्यूशन'!
-प्रेम विस्फोट है, खुद के भीतर 'ब्लास्ट'..!
-प्रेम कोई क्रम नहीं, सीढ़ी दर सीढ़ी भी चढ़ना नहीं... 'होमियोपैथी'का 'स्लो' इलाज भी नहीं है... क्षण मे क्रांति होती है और रूपांतरण होता है...!

(जो प्रेम के लिए तैयार है वह परमात्मा के लिए तैयार है. प्रेम एक ऐसी 'महामृत्यु' है जहाँ शरीर वही रहता है और मन बदल जाता है. कोई और ही उर्जा हमारे भीतर आविष्ट हो जाती है...)
....पत्थर की मूर्ति हो या ईश्वर , क्या फर्क पड़ता है.... बस यही हो कि थोड़ी पवित्रता आ जाए.... प्रेम करना आ जाए.... और झुकने की कला भी आ जाये...!

( तर्कों को नासमझों के लिए छोड़ दीजिए.... समय का सदुपयोग कीजिये और जीवन की गहराई मे उतरिये.... कोशिश करने मे क्या जाता है?)
मुद्दतों की तिश्नगी थी, और सामने था मयकदा ...
... .........प्यास तो बुझ गयी पर हमी ना रहे.......!

(जहाँ अपेक्षाएं रहेंगी वहाँ प्रार्थनाएं पूरी नहीं होंगी...)
छुप के झांकती थी चाँदनी मेरे छत से रोज़,
दीपक जो बुझा , तो 'ढीठ' उतर आई आँगन में....!

(.. अब पल-पल जलाती है मुझे...)
 
सुना, मुस्कुराते होंठ भी चखते हैं अश्कों की नमी..
आज मेरी नम आँखों को खुल कर हंस लेने दो....!

(-इक सांस ही बची है, वो भी न टूट जाए...)
शिक्षित होने के लिए सीखने के लिए खूब जतन किये हैं दुनिया ने... विद्यालय विश्वविद्यालय के निर्माण आदि. आगे बढ़ने के लिए विस्तार है... हम बढ़ भी रहे. 

पर क्या कोई ऐसी यूनिवर्सिटी है जो भुलाना सिखा दे? पीछे जाना सिखा दे...?
समझ , शिक्षा संस्कार जो मन के स्लेट पर लिखे हुए हैं , क्या कोई फिर से उस स्लेट को धो-पोंछ कर पहले जैसा बना सकता है? 
... एक बार फिर से वही आँखे दे सकते हो. जो बचपन मे मैं लेकर आई थी? हाँ, वही निर्दोष निर्विकार चित्त भी चाहिए ...
सारे प्रमाण पत्र, सारी शिक्षा जलाने की इच्छा है...सारी बुद्धि सारी समझ गवां देने का मन है
रीति- रस्म -संस्कारों को पोछना चाहती हूँ.... और एक बार फिर से उसी रहस्य के साथ सबकुछ देखना चाहती हूँ..वही आह्लाद वही विस्मय और वही विभोर चित्त मुझे फिर से चाहिए... दे सकोगे?
"मैं चीखना चाहती हूँ हाईएस्ट फ्रीक्वेंसी के साथ, चिल्लाना चाहती हूँ... बीते पलों मे एक बार फिर से जाना चाहती हूँ..."

ईश्वर, मेरी उम्र अब आगे मत बढ़ाना हो सके तो मुझे पीछे ही ले चलो...!!
जहाँ आग रहेगी ,धुंआ वहीँ उठेगा....!!
-------------------------------------------------------------------------------
-ना.. ना .. नहीं... धुंआ आग का हिस्सा नहीं है. अगर लकड़ी मे पानी ना हो तो धुंआ उठ ही नहीं सकता . धुँआ उठता है आर्द्रता के कारण , पानी के कारण, गीलेपन की वजह से. 
हाँ जब तक मन गीला है इच्छाओं से... कल्पनाओं से... तकलीफदेह धुँआ ही उठेगा.
और कब तक ऐसी धुन्धुआती जिंदगी चलेगी? आग भी हमी जलाते हैं रौशनी की तलाश मे, पर धुंआ अँधेरे से भी बदतर कर डालता है.. अपनी आँखे भी आंसुओं से भरती हैं और दूसरों की भी. रौशनी तो दिखती नहीं और आँख मिचमिचाने के सिवा रह क्या जाता हैं.

-मन के आपाधापी और इच्छा से जब हम मुक्त होंगे उसी दिन प्रज्ज्वलित और धूम्ररहित शिखा उठेगी.

(मुहूर्तं ज्वलितम श्रेय:
जी करता है एक पल मे ही भभककर जल जाऊं... जीवन को लम्बाने से बेहतर होगा उसे प्रज्ज्वलित करना.. हाँ क्षण मे...! )

Sunday, September 1, 2013

उम्र के इक मोड पर आपकी जिंदगी में सबकुछ बदल जाता है... सिर के बाल सफ़ेद होने लगते हैं.. रगें ढीली पड़ जाती है... वेस्ट -लाइन चौड़ी हो जाती है... आप पर औरों का और आपका अपने आप पर विश्वास घटने लगता है ..आप हार्ट अटैक से डरने लगते है और इस उम्र में एक ई. सी.जी. करवा ही लेते हैं... आपकी लड़की ने जवानी में कदम रख दिया है, और उसके कुवान्रेपन को लेकर आप सजग हो उठते हैं.. जीवन की जितनी अभिलाषाएं थीं और आप सोचते थे कि पूरी हो जाएँगी एकाएक आपको लगता है कि अब मुमकिन नहीं.. जैसे आपके जीवन में शाम शुरू हो गयी और अब रात का इन्तेज़ार है...

* (जिन्होंने इस उम्र को छुआ नहीं  वे इसकी भयानकता नहीं सोच सकते...)
.
.
.
"हद है ... चच्चा जी.. इस उम्र में भी आपको आशिकी सूझ रही है वो भी 'टीन-एजर्स ' वाली..."

Monday, August 5, 2013

इंसान को प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है - दर्द! 
क्यूंकि दर्द ही व्यक्ति में स्नेह और करुणा को जाग्रत करता है... और यही स्नेह और करुणा मानवीय चेतना के द्वार खोलते हैं
चुप्पी, केवल शब्दों में नहीं, विचारों में भी ज़रूरी है...|
बाहर से शांत और भीतर 'जलते' रहने से कुछ भी हासिल नहीं....

'मौन' , अर्थात मौखिक और वैचारिक शांति.......!
सुबह हम जागते थे और, उसे हम याद करते थे ,
...............अकेले बैठ के वीरान दिल आबाद करते थे.....
अक्सर दिल प्यार में पड़ना चाहता है और दिमाग को इस बात का विश्वास दिला देता है कि वह प्यार में है... प्यार में पड़ने की अवधारणा इतनी लुभावनी होती है कि दिमाग भी दिल के आदेश को मानता है... पर अक्सर (सभी केसेज़ में नहीं) प्यार कुछ नहीं है बस 'दिमाग' की एक परिवर्तित स्थिति है, कारण सीधा है, जब दो लोग प्यार करते हैं ,घंटो बातें करते हैं ,साथ रहते है , सारी बातें शेयर करते हैं, लड़ते हैं झगड़ते है , तो धीरे धीरे दिमागी परिवर्तन फिर होता है और कभी -कभी तो ऐसा होता है कि उस व्यक्ति से नफरत सी हो जाती है..
अब सोचिये जिसके लिए दिल धडकता था उस व्यक्ति से घृणा कैसे हो सकती है? और केवल घृणा नहीं बल्कि व्यक्ति चाहता है कि 'उस' व्यक्ति को तरसता तडपता हुआ देखे.

उफ्फ्फ...... जो दिल प्रेम करता है उसके मन में दुर्भावनाओ का कोई स्थान नहीं होता...
समुद्र को जलाना संभव नहीं..... !
इसे जमा सकते हैं वाष्पीकृत कर सकते हैं, पानी का रूप बदल सकते हैं 'स्टेट' बदल सकते हैं... अस्तित्व नहीं मिटा सकते. प्यार करने वाले पे आप क्रोध कर सकते हैं पर घृणा नहीं...अप्रिय जगह के लिए कोई स्थान नहीं.

अक्सर प्यार दिमागी स्थिति है .. पर सच्चा प्रेम है तो आपको सिर्फ दिलो-दिमाग ही नहीं बल्कि प्रकृति की सारी शक्ति उसको पोषित करने में सहायता करती है...जहाँ प्रेम है वहाँ नकारात्मक भाव अपना ज़हर नहीं फैला सकते...!
बात-बेबात तेरी आँखें भर आती होंगी,
और तू अपना चेहरा बाजुओं में छुपाता होगा....
...........जब भी मेरा ज़िक्र कहीं आता होगा.......!

Sunday, July 7, 2013

अबके बरस भेज भईया को बाबुल

बीते रे जुग कोई चिट्ठिया ना  पाती
.............ना कोई नैहर से आये...!

इन दो सालों में हमे  पहली बार ऐसा लगा कि हमारा बचपन खो गया है..... संगी साथी , खेल-खिलोने सब बीते दिनों की बातें लगने लगीं... घर दूर दूर होता जा रहा है. दो सालों में हम डाल्टनगंज (मायका) सिर्फ शादी ब्याह में जा रहे हैं... वहाँ दस- पन्द्रह दिनों की मौज मस्ती होती है, नाच गाने , उत्सव-उत्सव-उत्सव... खूब काम होते हैं और  सब के सब बिजी.... ना तो अच्छे से माँ- चाची से बात-चीत हो पायी ना भाई बहनों के साथ गप-शप, ना सहेलियों दोस्तों का जमावड़ा रहा ना छत में धमाचौकड़ी हो पायी....  लड़ना झगडना , रूठना मनाना इन सब के बिना कुछ खाली खाली सा  लगा...
....बैरन जवानी ने छीने  खिलौने
और मेरी गुडिया चुराई.....

एक बार मन  हो रहा कि हम फुर्सत में घर जाएँ.. खूब बातें करें सबसे... अपनी पसंद की चीज़ें खाए... वहाँ की गलियों में  घूमे....  हमउम्र भाई- बहनों दोस्तों के साथ खेलें... अपने लगाये पौधों को सींचे... टायर के झूलों में झूलें, पड़ोस के बगीचे के अमरुद चुराए, उनके फूल तोड़ कर भाग जाएँ... अपने कमरे की सफाई करें... छुपाई चीज़ों को फिर से खोजें... सबको दिखाएँ.. पुराने ग्रीटिंग कार्ड और खतों को निकाल कर फिर से पढ़े... फिर से वही वही शरारतों को दुहरायें जिनसे खूब हमारी क्लास ली जाती थी... और फिर से मम्मी अपने हाथों से रोटियों के कौर मेरे मुह में डालती जब हम असाइनमेंट पूरा कर रहे होते...
घर जाना चाहते हैं....!

"अबके बरस भेज भईया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाये...."

Friday, June 28, 2013

आदमी के बदन पर दो गज कपडे की तरह है औरत...जिस दिन यह कपडा फटा आदमी क्या पूरा घर नंगा हो जाएगा...|
हर मोर्चे पे अकेले संघर्ष करती लडती औरत.... ! तकलीफ में भी होती हैं तो कभी चौराहे पे जा कर नहीं रोती... घर के उस कोने में जा के रोती है जहाँ कोई देख न पाए....!

.....औरत का छिप कर रोना, सिर्फ रोना नहीं , एक लोक गीत है जो ज़िन्दगी की तपिश, आवाज़ और लय से निकले आदमी को आदमी और घर को घर बनाये रखने का एक जज्बाती सलीका है.... हुनर है.... एक कला है.....!

Thursday, June 27, 2013



"रब दा की पाना....
एथों पुटिया ते एथे लाना...."
- बुल्लेशाह.

(परमात्मा को क्या पाना है? यहीं से उखाडना है यहीं लगाना है. मतलब, यहीं बैठा है यहीं लाना... रब नहीं खोया कहीं बस उसकी याद खो गयी है...इक बूँद की पहचान हो तो सब सागर की पहचान हो जाए.
क्या दुनिया...? क्या भीड़-भाड़..? बस प्यासों की कतारों पर कतारें....... यह संसार!!
अब झांको खुद में....)

Tuesday, June 25, 2013

मित्रत्व

रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी शारदा देवी से  विवेकानंद जी आज्ञा मांगन गए कि वे अमरीका  जाना चाहते हैं और उनसे आशीष मागने आये हैं. शारदा जी ग्रामीण महिला थीं, सो विवेकानंद जी ने सोचा भी नहीं कि आशीष/ आज्ञा देने में इतना सोच-विचार करेंगी.  शारदा जी ने उन्हें नीचे से ऊपर और से देखा और कहा, 'सोच के बताउंगी...' और खाना बनाने में तल्लीन हो गयीं.
"सिर्फ शुभाशीष चाहता हूँ, मंगलकामना तुम्हारी कि मैं जाऊं और सफल होऊ.." स्वामी जी बोले.
थोड़ी देर बाद शारदा जी ने उन्हें निरखा और कहा, "नरेन्द्र, वो छुरी देना......"
नरेंद्र छुरी उठा के शारदा के हाथ में पकडाते हैं,  शारदा प्रसन्न हो आशीष देती हैं और कहती हैं "हर क्षेत्र में सफल हो  नरेन्द्र.."

स्वामी जी अवाक, पूछते हैं कि," छुरी में और तुम्हारे आशीष में कोई सम्बन्ध था क्या?"
शारदा ने कहा ,"हाँ सम्बन्ध था , मैं देखना चाहती थी कि तुम छुरी कैसे पकडाते हो.. मूठ तुम पकड़ते हो या फलक पकड़ते हो? और जैसा मैंने सोचा तुमने फलक पकड़ के मूठ मुझे धराया , आमतौर पर लोग मूठ पकड़ते हैं. तुमने मेरी सुरक्षा की फिक्र करते हुए खुद को असुरक्षा में डाला. तुमने अपने चारों और के जीवन की सुरक्षा को महत्व दिया इसलिए,
तुम्हारे मन में मैत्री का भाव है, तुम जाओ तुम्ही  से कल्याण होगा, मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है..."

(एक छोटी सी घटना है ये, जिसमे मैत्री प्रकट होती है , साकार बनती है. सौ में  से निन्यानबे मौके पर कोई भी मूठ पकड़ेगा तो वह सहज होया , उसके लिए आत्मरक्षा सहज होगी... और मैत्री आत्मरक्ष से  ऊपर उठ जाती है.. मैत्री का अर्थ ही है 'सक्रीय करुना' एक्टिव कम्पेशन ...! अत: मैत्री सिर्फ मित्रता (फ्रेंडशिप) नहीं, बल्कि फ्रेंडलिनेस (मित्रत्व) है. मित्रता और मित्रत्व में सबसे बड़ा फर्क यही है कि मित्रता जब तक  है शत्रुता भी है यानी जिनके मित्र हैं शत्रु भी हैं, मित्रत्व यानी शत्रुता या बैर- भाव का तिरोहित हो जाना... बस)

Monday, April 29, 2013

प्रेम की परिभाषा

लड़का : सुख क्या है? शांति किसे कहती हो? और प्यार की परिभाषा क्या है?

लड़की : सब कुछ परिभाषा के दायरे में नहीं.....!

लड़का : जानती हो. मैंने इन सब को समझने के लिए कई किताबें घोट डाली... धर्म शास्त्र से ले कर काम शास्त्र तक.. मंदिर से वेश्यालय तक का सफर किया...शराब की बोतलें औरतों का बदन मुझे इन तक नहीं पहुंचा पाया..मेरा जीवन खत्म होने जा रहा है और अब तक सुख शांति प्रेम को ना समझ सका.. तुम समझा सकोगी? क्यों कि मेरे लिए सबसे ज्यादा मायने  तुम रखती हो भले ही ये दो दिन की पहचान है.... मदद करो!

लड़की: ...............................

लड़का: देखो............!

लड़की :ये क्या है? फिर से ...................... उफ्फ्फ ????????

लड़का :छोड़ नहीं पा रहा........ सुनो... देखो.... महसूस करो...

'आह... मीलों तक बर्फ ही बर्फ...उस पर चन्द्रमा की किरने...रात बढ़ रही है सब सो रहे हैं.... पेड़ पौधे नदी नाले... सब.. मैं.. तुम....आह!
देखो... सीमाहीन समुद्र... लहर पे लहेर डूबती लहरों की चीख के अलावा कुछ नहीं...
सुनो रात झुक रही है, ज़मीं शांत हो रही है... सिर्फ एक आवाज़ दूर से आ रही है.. तुम्हारा नाम!!
उफ्फ्फ....... '
मेरी मुहब्बत डूब गयी फिर से............ !!
अब सब खामोश हैं.... सब कुछ ... वक्त की धडकन बंद हो गयी फिर से.....!

- कल कोई और पूछेगा प्रेम की परिभाषा... पर उत्तर...........