Friday, June 28, 2013

आदमी के बदन पर दो गज कपडे की तरह है औरत...जिस दिन यह कपडा फटा आदमी क्या पूरा घर नंगा हो जाएगा...|
हर मोर्चे पे अकेले संघर्ष करती लडती औरत.... ! तकलीफ में भी होती हैं तो कभी चौराहे पे जा कर नहीं रोती... घर के उस कोने में जा के रोती है जहाँ कोई देख न पाए....!

.....औरत का छिप कर रोना, सिर्फ रोना नहीं , एक लोक गीत है जो ज़िन्दगी की तपिश, आवाज़ और लय से निकले आदमी को आदमी और घर को घर बनाये रखने का एक जज्बाती सलीका है.... हुनर है.... एक कला है.....!

Thursday, June 27, 2013



"रब दा की पाना....
एथों पुटिया ते एथे लाना...."
- बुल्लेशाह.

(परमात्मा को क्या पाना है? यहीं से उखाडना है यहीं लगाना है. मतलब, यहीं बैठा है यहीं लाना... रब नहीं खोया कहीं बस उसकी याद खो गयी है...इक बूँद की पहचान हो तो सब सागर की पहचान हो जाए.
क्या दुनिया...? क्या भीड़-भाड़..? बस प्यासों की कतारों पर कतारें....... यह संसार!!
अब झांको खुद में....)

Tuesday, June 25, 2013

मित्रत्व

रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी शारदा देवी से  विवेकानंद जी आज्ञा मांगन गए कि वे अमरीका  जाना चाहते हैं और उनसे आशीष मागने आये हैं. शारदा जी ग्रामीण महिला थीं, सो विवेकानंद जी ने सोचा भी नहीं कि आशीष/ आज्ञा देने में इतना सोच-विचार करेंगी.  शारदा जी ने उन्हें नीचे से ऊपर और से देखा और कहा, 'सोच के बताउंगी...' और खाना बनाने में तल्लीन हो गयीं.
"सिर्फ शुभाशीष चाहता हूँ, मंगलकामना तुम्हारी कि मैं जाऊं और सफल होऊ.." स्वामी जी बोले.
थोड़ी देर बाद शारदा जी ने उन्हें निरखा और कहा, "नरेन्द्र, वो छुरी देना......"
नरेंद्र छुरी उठा के शारदा के हाथ में पकडाते हैं,  शारदा प्रसन्न हो आशीष देती हैं और कहती हैं "हर क्षेत्र में सफल हो  नरेन्द्र.."

स्वामी जी अवाक, पूछते हैं कि," छुरी में और तुम्हारे आशीष में कोई सम्बन्ध था क्या?"
शारदा ने कहा ,"हाँ सम्बन्ध था , मैं देखना चाहती थी कि तुम छुरी कैसे पकडाते हो.. मूठ तुम पकड़ते हो या फलक पकड़ते हो? और जैसा मैंने सोचा तुमने फलक पकड़ के मूठ मुझे धराया , आमतौर पर लोग मूठ पकड़ते हैं. तुमने मेरी सुरक्षा की फिक्र करते हुए खुद को असुरक्षा में डाला. तुमने अपने चारों और के जीवन की सुरक्षा को महत्व दिया इसलिए,
तुम्हारे मन में मैत्री का भाव है, तुम जाओ तुम्ही  से कल्याण होगा, मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है..."

(एक छोटी सी घटना है ये, जिसमे मैत्री प्रकट होती है , साकार बनती है. सौ में  से निन्यानबे मौके पर कोई भी मूठ पकड़ेगा तो वह सहज होया , उसके लिए आत्मरक्षा सहज होगी... और मैत्री आत्मरक्ष से  ऊपर उठ जाती है.. मैत्री का अर्थ ही है 'सक्रीय करुना' एक्टिव कम्पेशन ...! अत: मैत्री सिर्फ मित्रता (फ्रेंडशिप) नहीं, बल्कि फ्रेंडलिनेस (मित्रत्व) है. मित्रता और मित्रत्व में सबसे बड़ा फर्क यही है कि मित्रता जब तक  है शत्रुता भी है यानी जिनके मित्र हैं शत्रु भी हैं, मित्रत्व यानी शत्रुता या बैर- भाव का तिरोहित हो जाना... बस)