Monday, August 5, 2013

इंसान को प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है - दर्द! 
क्यूंकि दर्द ही व्यक्ति में स्नेह और करुणा को जाग्रत करता है... और यही स्नेह और करुणा मानवीय चेतना के द्वार खोलते हैं
चुप्पी, केवल शब्दों में नहीं, विचारों में भी ज़रूरी है...|
बाहर से शांत और भीतर 'जलते' रहने से कुछ भी हासिल नहीं....

'मौन' , अर्थात मौखिक और वैचारिक शांति.......!
सुबह हम जागते थे और, उसे हम याद करते थे ,
...............अकेले बैठ के वीरान दिल आबाद करते थे.....
अक्सर दिल प्यार में पड़ना चाहता है और दिमाग को इस बात का विश्वास दिला देता है कि वह प्यार में है... प्यार में पड़ने की अवधारणा इतनी लुभावनी होती है कि दिमाग भी दिल के आदेश को मानता है... पर अक्सर (सभी केसेज़ में नहीं) प्यार कुछ नहीं है बस 'दिमाग' की एक परिवर्तित स्थिति है, कारण सीधा है, जब दो लोग प्यार करते हैं ,घंटो बातें करते हैं ,साथ रहते है , सारी बातें शेयर करते हैं, लड़ते हैं झगड़ते है , तो धीरे धीरे दिमागी परिवर्तन फिर होता है और कभी -कभी तो ऐसा होता है कि उस व्यक्ति से नफरत सी हो जाती है..
अब सोचिये जिसके लिए दिल धडकता था उस व्यक्ति से घृणा कैसे हो सकती है? और केवल घृणा नहीं बल्कि व्यक्ति चाहता है कि 'उस' व्यक्ति को तरसता तडपता हुआ देखे.

उफ्फ्फ...... जो दिल प्रेम करता है उसके मन में दुर्भावनाओ का कोई स्थान नहीं होता...
समुद्र को जलाना संभव नहीं..... !
इसे जमा सकते हैं वाष्पीकृत कर सकते हैं, पानी का रूप बदल सकते हैं 'स्टेट' बदल सकते हैं... अस्तित्व नहीं मिटा सकते. प्यार करने वाले पे आप क्रोध कर सकते हैं पर घृणा नहीं...अप्रिय जगह के लिए कोई स्थान नहीं.

अक्सर प्यार दिमागी स्थिति है .. पर सच्चा प्रेम है तो आपको सिर्फ दिलो-दिमाग ही नहीं बल्कि प्रकृति की सारी शक्ति उसको पोषित करने में सहायता करती है...जहाँ प्रेम है वहाँ नकारात्मक भाव अपना ज़हर नहीं फैला सकते...!
बात-बेबात तेरी आँखें भर आती होंगी,
और तू अपना चेहरा बाजुओं में छुपाता होगा....
...........जब भी मेरा ज़िक्र कहीं आता होगा.......!