Monday, January 30, 2017

दुश्मनों को माफ़ करने वाला attitude ही उन्ही उनकी औक़ात में रखता है।
जवाब देने, react करने से वे अपने आपको आपके बराबर या फिर खुद को बड़ा समझने लगते हैं।

Tuesday, January 10, 2017

मेरा शहर

बिना मेरी हाँ-हूँ सुने उसने अपनी बात जारी रखी, "यार रश्मि,  कुछ दिनों पहले ऐसा लग रहा था मानो शहर की सारी  खूबसूरत लड़कियों की शादी हो गयी.... सब की सब आई ए एस अफसरों, इंजिनीअर्स   और डॉक्टर्स  की बीवियां हो गयीं हैं........... रह गयी सिर्फ सरफिरी चंद  शोध छात्राएं और 'धैर्य-कुमारियाँ'!
सारे सपने ब्लैक एंड वाइट हो गए थे । शहर धीरे -धीरे मरता जा रहा था ,नौकरी विकास और 'प्रेम; की गुंजाईश कम हो गयीं  थीं... मुझे शहर छोड़ जाना पडा फिर भटकता ही रहा। काफी दिनों बाद जब मेरा थक हार के  खाली हाथ लौटना हुआ यहाँ तो स्टेशन पर पांव  रखते ही अपने शहर  की बत्तियां  दिखी तो लगा सारा  शहर बाहों में आ गया,टिम -टिम , दिप -दिप  जैसे जादुई चिराग, जैसे चूल्हे की आग जैसे गर्म अलाव, फिर बत्तियां अपनेपन के गर्मी से भर गयीं दिल में सच ....आई मिस्ड माय टाउन , रियली!"

-फिर मुझे भी अच्छा लगा उस से बतियाना!

तुम्हारा होना ..मुझे मेरे होने का अहसास करवाता है |
संवाद रोटी नहीं है ...कि तुम भी रोज़ खाओ ,मैं भी रोज़ खाऊं |बस इतना जाना भर काफी से अधिक है...कि तुम हो ,...मेरे लिए हो !!!!

Monday, January 9, 2017

क्राइम

क्रिमिनल सुल्तान हैं,
कानून मेहरबान हैं
जनता को सिर्फ सुनना है...
वादों को निगलना, नारों को उगलना है!
कहीं पे दर्द रहता है
मन अकेले में रोता है
नेताओं के भाषणों से कानों को बचाओ
चाहो तो एक और क्राइम कर के सुर्ख़ियों में आओ

स्त्री

पुरुष जब किसी स्त्री के शरीर को गलत नज़र से देखता है/छूता है तो उसे सिर्फ इतना याद रखना चाहिए कि वह सिर्फ अपनी माँ की ही नहीं, बल्कि अपने पूरे खानदान की जीवित और मृत हर स्त्री की कोख पर थूकता है.....!

Friday, January 6, 2017

भाषा

संसार की बड़ी से बड़ी भाषा हर विधा के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। अंग्रेजी या उर्दू में घनाक्षरी लिखें तो वो खूबसूरती नहीं आएगी जो ब्रजभाषा में आएगी। ग़ज़ल के लिए हिंदी साहित्य ज़रा धीमा पड़ जाता है वहीँ उर्दू में बात कुछ और होती है। उर्दू की मिठास भले चाशनी जैसे मुँह में घुली हो लेकिन उर्दू शहरों में पली बढ़ी है। जबकि हिंदी और इसकी उपभाषाएं या बोलियाँ गांवों में जवान हुई हैं। खेत की मेढ़, अमराई, पनघट , नदियां, तालाब, बड़, पीपल ,  लहलहाती फसलों का जो सौंदर्य हिंदी में आया वह शायद उर्दू में फीका रहा है।

'विधिना करो देह को हमरी
तोहरे घर की देहरी
आवत जात तोरे चरण के धूरा
लगत जात हर बेरी....'

यह भारतीय नारी ही अपने प्रियतम से ऐसा कह सकती है। बोलियों में लोकगीत किसी बड़े साहित्यकार के नहीं रचे होते। जाने क्या सोचकर लिखते हैं के अनपढ़ गांव वाले रचनाकार की अभिव्यक्ति का चमत्कार भी दंग कर देता है....

तैने ले लई प्राण अहिरिया
तिरछी मार नज़रिया
एक पुरा एक ही बखरी एक ही चलत डगरिया
एकई उठन एक ही बैठन, एकइ परत सेजरिया
अब तो छुरी तुम्हारे हाथन, घीच करे गिरधरिया....'

[अहिरन (राधा) ने तिरछी नज़र मार कर प्राण ले लिए। एक गाँव एक मोहल्ला और एक ही रास्ता है। साथ उठना बैठना और सेज भी एक है। अब छुरी तुम्हारे हाथ में है और हमने गर्दन आगे कर दी है।]

Thursday, January 5, 2017

प्रोपोज़

यार , प्रपोज न करने का एक अपना मज़ा है......। सुन, मैं उन में से नहीं  जो इस बात का इंतज़ार करें की प्रपोज़ करना सिर्फ लड़कों की ड्यूटी है।
देखो, जिस दिन मैं प्रपोज करुँगी न उस दिन फूलों की बारिश होगी , झरने गायेंगे , हवा नाचेगी और मेरे लम्बे बालों में मेरा और मेरे महबूब का चेहरा छिपा होगा। बैक ग्राउंड में एक रोमांटिक ओल्ड सौंग बजेगा. ..

"आजा सनम मधुर चांदनी में हम-तुम मिले तो वीराने में भी आ जायेगी बहार
झूमने लगेगा आसमान . ..."