Tuesday, December 13, 2022

न काहू से दोस्ती न काहू से बैर

'ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर' मानसिकता वाले सबसे खतरनाक होते है। ये ग़लत के ख़िलाफ़ मौन साधते हैं। सबकी हाँ में हाँ मिलाना जानते हैं। वरना अन्याय के विरुद्ध उठने वाली आवाज़ों की दुश्मनी और दोस्ती दोनों जमकर होती है।

Friday, November 11, 2022

धनतेरस

ना ना... धनतेरस धन के लिए नहीं बल्कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए मनाते हैं। स्वास्थ ही सबसे बड़ा धन है। मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि समुद्र मंथन से आज पीतल के कलश में अमृत लिए प्रकट हुए थे। यह अमृत ही उत्तम स्वास्थ्य को दर्शाता है। 
ऋतु परिवर्तन के दौरान स्वास्थ का ध्यान अति आवश्यक है। अगले महीने से नई फ़सल आएगी उसी को संजोने के लिए बर्तन खरीदने तथा गांव में कोठिला (धान को सुरक्षित रखने के लिए मिट्टी का तैयार बिना दरवाज़े का घर) पारने की परम्परा रही थी जो बाद में धनतेरस को बर्तन खरीदने तथा घर मे घरकुंडा निर्माण से विस्तार पाया।
 ये कब सोने चांदी की खरीदारी में बदल गया पता नही और दीवाली धन ऐश्वर्य का प्रतीक बनती चली गयी।
धन्वंतरि आपको उत्तम स्वास्थ्य दें , लक्ष्मी धन संपदा दें और गणेश सदैव सद्बुद्धि दें।
शुभकामनाएं।
-रश्मि

Friday, August 5, 2022

बेरोजगारी बनाम रोज़गार

कौन कहता है के बेरोजगारी का दौर है?
 इधर हमारे युवा लोगों को सोशल मीडिया ने इत्ता रोजगार दिया है कि वे हज़ार पोस्ट और कमेंट इसी बात पर लिख देंगे कि 'हर हर शंभू' फरमानी नाज़ का है या अभिलिप्सा पांडा का है। वे अपनी एनर्जी इसमें खर्च करेंगे तिरंगे की डीपी किस एंगल से लगाएं के ज़्यादा पॉपुलर हों।
उनकी एनर्जी इस बात पर भी हाई होगी कि प्रियंका गांधी काले कपड़ो में बैठी हैं तो उसपर कौन सा गाना डालकर मीम बनाया जाए। वे गला फाड़ेंगे कि राहुल गांधी के कौन से डायलाग पर वे पप्पू प्रूव हुए। 
उनकी ऊर्जा मोदी की बढ़ती दाढ़ी पर भी खर्च होगी। वे शशि थरूर की कोई नई फ़ोटो खोज कर 3 दिन टाइम पास कर लेंगे। मगर वे टेक्नोलॉजी, विज्ञान, ज्ञान, विकास और शिक्षा की बात नहीं करेंगे (यह सरकार, प्रशासन आदि का काम है)।
वे दिन भर कमियां निकालने, कोसने या मज़ाक उड़ाने में बिजी हैं, और यही इनका क्रिएटेड रोजगार है। और आप कहते हैं कि आज बेरोजगारी समस्या है!

Wednesday, September 1, 2021

जन्माष्टमी

जय श्री कृष्ण!
शुभकामनाएं जन्माष्टमी की ज़रा हट के...

आज तो सबने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की ढेरों और सार्थक पोस्ट लिखी हैं। मैं भी खूब लिखती हूँ उनको जब भी मौका मिलता है। आज मैं उनके योगी-भोगी, योद्धा-नर्तक, प्रेमी-निर्मोही वाले गुणगान से थोड़ा अलग बात करती हूँ। जहाँ वे सिर्फ नन्हें बालक हैं और मैया यशोदा हैं। अगर उनकी बाल लीलाओं (चमत्कार वाले) को छोड़कर बात करें तो यशोदा दुनिया की बेस्ट मॉम दिखती हैं। और बेस्ट पेरेंटिंग टिप वही दे सकती हैं।
माँ का सर्वप्रथम गुण उसके वात्सल्य के अलावे धैर्यवान होना होता है। यशोदा ने जिस तरह बालक कृष्ण की शरारतों और गांव वासियों की शिकायतों के बीच बैलेंस बना कर रखा है वो हम सब के लिए अनुकरणीय है। इतना लाड़ प्यार और वात्सल्य के बाद कहीं कहीं सज़ाओं का ज़िक्र भी है जैसे 'माखन टाइमआउट' हो, या ओखली से बांधना, या रूठ कर बात न करना, गोपियों की शिकायतों से झल्लाना, उसके बाद ख़ुद दुःखी होना। ये बातें 'प्राइज एंड पनिशमेंट' की भी थ्योरी बताती है। 
यशोदा एक समृद्ध और संपन्न घर से दिखती हैं, उनके पति नन्द जी नगर प्रमुख हैं। घर मे चाकरों की कमी नहीं दिखती। फिर भी यशोदा का ज़िक्र आता है कृष्ण को नहलाते हुए, खिलाते-खेलते हुए, उन्हें सजाते हुए, मनाते हुए, सुलाते हुए ,लोरी सुनाते हुए। यानी ख़ुद से पालन पोषण करते हुए। ये मत कहियेगा आप कि वे हाउसवाइफ थीं। यशोदा और उनकी टीम पूरे नगर के लिए दही, माखन, घी निकालने का काम करती थीं।
मैं कहना चाहूँगी कि माताएँ जो वर्किंग हों या हाउसवाइफ, जॉइंट फैमिली में हों या न्यूक्लियर , बच्चे जब छोटे होते हैं तब आप उनकी मैक्सिमम ज़िम्मेदारियाँ उठाइये। हाँजी आपके आसपास जो हों उनकी हेल्प भी लीजिये पर गुड पेरेंटिंग के लिए क्वालिटी टाइम ज़रूर दीजिये। हां डैड भी! 
एक सार्थक जन्मोत्सव तभी होगा जब जिसे हमने जन्म दिया है उसका पालन पोषण भी उत्सव समान हो। हंसी-खुशी, समय और पूरी एनर्जी के साथ। 
बधाई के साथ मेरी एक रिक्वेस्ट सुनते जाइये , अपने आसपास की एक बेस्ट माँ और उनके बेटे या बेटी की तस्वीर शेयर कीजिये। उनके लिए कॉम्प्लीमेंट के तौर पर। चाहें तो मेरे कमेंट बॉक्स में भी डाल सकते हैं।

Friday, November 9, 2018

गोधन

दीपावली के दो दिन बाद यम द्वितीय/ भाई दूज/गोधन कूटने की परंपरा है। बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से मनाए जाने वाले इस त्योहार में बहनें अपने मुख्य द्वार पर गोधन बना भाइयों के दुश्मनों को प्रतीकात्मक रूप में दण्ड, मूसल आदि से कूटती हैं। लोकगीतों की झंकार  में इसकी झलक आप देख सकते हैं। वहीं घर में खीर पूड़ी पीठा पकवान आदि बनते हैं। मज़ेदार बात बताती हूँ। पीठा बनाने के दौरान उसमें चावल के आटे की छोटी छोटी चिड़िया नुमा आकृति बना कर डालने की प्रथा है। पीठा-पूरी खाने के पहले भाई लोग उस चिड़िया को पैर से तोड़ते हैं फिर टीका लगवा बजड़ी खाते हैं। यानी घर मे होने वाले अपशकुन आदि को नष्ट कर के ही चैन का निवाला डालते हैं।

एक बात बताओ भाई लोग? ई बहनें तो ताल ठोंक कर तुम्हारे दुश्मनों की छाती पर चढ़ ईंट पत्थरों और कांटों के बीच दंड मूसल से छिन्न भिन्न करती आयीं हैं और तुमलोग घर मे खाने से पहले 'चिड़ी मार' बन बैठते हो?
मतलब भाइयों  रक्षाबन्धन वाले तुम्हारी रक्षा से ज़्यादा तगड़ी सुरक्षा बहने देती आयी हैं। है ना?

Friday, October 12, 2018

Me too

देखा जाए तो 'मी टू'  के फेर में 99% महिलाएं आ जाएंगी और 90% पुरुष लपेट में।
बाकी 10%पुरुष ऐसे होते हैं जो कैरियर,  परिवार , समाज के लिए जज़्बा रखे होते हैं। वे क्रिएटिव हैं, इनोवेटिव हैं उन्हें फ़ालतू चीजों को न तूल देने ज़रूरत होती है ना वक़्त होता है। सही मायनों में यही पुरुष हैं। इन्हें सलाम!

रही बात महिलाओं की आंकड़ा शायद 99% से 100% भी हो सकता है।
महिलाओं की इच्छा अनिच्छा अभी भी पुरुषों से एक स्टेप नीचे है। भले ही स्त्री अपने बोल्ड, बेबाक होने का दावा कर ले। माहौल बदला है, रहन सहन, शिक्षा दीक्षा बदली है। थोड़ा बराबर आने दिया गया है। पर अभी भी बहुत गहरी खाई बची है बंधू! ज़रा पांव फिसला नहीं कि अस्तिव की किरचियाँ बिखर जाती हैं। (थोड़ा कहा, ज़्यादा समझना) अच्छी बात है मौका मिला तो कहने का साहस जुटा रहीं स्त्रियां। अब इसमें कितने जेन्युइन केस आएंगे और कितने बस बदले की भावना लिए हुए। ज़ाहिर है अधिकतर मामले ऐसे होंगे जहाँ पहले स्वेच्छा से अच्छे संबंध के बाद कारणवश अलगाव की स्थितियों के बाद खार खाए हुए रिश्ते। (100%He Too वाले केस, Me Too की तर्ज़ पर)

ज़रा सी आवाज़ क्या उठायी महिलाओं ने के समाज सकते में आ गया।

'महिला हों या पुरुष समाज के बनाए निषिद्ध दरवाज़ों के पार जाने का दुस्साहस दोनों दिखाते हैं, और उनकी चौखटों में सिर सिर्फ़ महिलाओं के ठुकते नज़र आते हैं।'

इंसान हैं सब... देवता नहीं। परफेक्शन किसी मे नहीं लेकिन उंगलियां उठाने का मौका समाज का कोई तबका नहीं छोड़ सकता। परतें उधेड़ने पे लोग आ जायें तो एक इंसान न बचे फिर। सब के सब कीचड़ से सने मिलेंगे लेकिन सोशल मीडिया पर गर्दभ राग अलापने में अपना पचहत्तर बिगहा का मुँह ज़रूर फाड़ेंगे!

"महफ़िल में बैठ कर न करो तंज हमपर तुम,
मुमकिन है कोई तुमपर भी कीचड़ उछाल दे...."

Saturday, July 21, 2018

पॉजिटिव टीचिंग

बचपन की तीन घटनाएं शेयर करना चाहूंगी।
छठी कक्षा में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।  किसी दूसरे स्कूल में परफॉर्मेंस था। असुविधाजनक कॉस्ट्यूम और भारी मेकअप मैनेज करना ज़रा मुश्किल था। मैंने ड्रेस पिनअप के लिए टीचर को कहा। मैडम ने बायीं गाल पर एक थप्पड़ लगाते हुए  कहा, "10 मिनट के बाद स्टेज पर जाना है और अभी तक ड्रेस नही संभाल पा रही तो परफॉर्म क्या करोगी.."
-उसी क्षण मुझे उन टीचर के प्रति  रेस्पेक्ट जाता रहा....!
प्रतियोगिताओं में भागीदारी कम हो गयी खासकर जहां वे होती थीं।

क्लास 7th, सर ने एक टफ क्वेश्चन बोर्ड पर लिख सॉल्व करने को कहा। मैंने जल्दी कर के हाथ उठाया। सर हंसे और बोले , "अभी तो अलाने और फलाने (दो स्टूडेंट्स के नाम) बना ही पाए तुमसे कैसे हो गया..?" अन्ततः अलाने-फलाने ने भी गलत जवाब लिखा। मैंने सही solution के बाद भी कॉपी बन्द कर बैग में रख दिया।
उस सब्जेक्ट से मेरा इंटरेस्ट ख़त्म हुआ। और सर के प्रति रेस्पेक्ट जाता रहा...!

क्लास 9th, उन दिनों स्कूल अंडर कंस्ट्रक्शन था। वाशरूम कम थे। इमरजेंसी में स्टूडेंट्स स्टाफ टॉयलेट यूज़ करते थे। मैं उस दिन टीचर्स वाशरूम से निकली ही थी कि दरवाज़े पर मैडम खड़ी थीं। मुझे स्टाफरूम में आने का इशारा किया। मैं गयी तो मैम ने कहा, "टीचर्स वाशरूम क्यूं गयी?"
-"मैम वहां भीड़ थी।"
-"भीड़ थी तो क्या, थोड़ा वेट करना सीखो.. और आज के बाद कोई भी स्टूडेंट टीचर्स टॉयलेट में नही आएगा। ये मैं नोटिस बोर्ड पर लिखवा रही अभी.."
इसके बाद वहाँ बैठे दो- एक सर और मैम ने बेशर्म भाव से ठहाके लगा दिए।
मुझे इंसल्ट और गुस्से की फीलिंग आयी, शायद उनलोगों ने भी नोटिस किया। मैं हट गई और फिर एक दो लोगों के प्रति सम्मान ख़त्म हुआ.....!

ये कहानी मेरी नही किसी की भी हो सकती है। शिक्षकों केलिए हरेक विद्यार्थी एक समान होने चाहिएं। और सब पर अपनी संतान सा स्नेह भी होना चाहिए एक ज़िम्मेदार अभिवावक की तरह क्योंकि टीचर्स स्कूल में पेरेंट्स का रोल अदा करते हैं। चाहें तो अनगढ़ मिट्टी को खूबसूरत आकर दे सकते हैं चाहे तो रौंद सकते हैं।
वे चाहें तो हमे कॉन्फिडेंस से लबरेज़ कर सकते हैं चाहें तो दब्बू बना दें। शिक्षक का पक्षपाती रवैया बहुत विद्यार्थियों को हीन भावना और कई डिसऑर्डर से भर देता है। नतीजतन पढ़ाई और अन्य गतिविधियों से इंटरेस्ट ख़त्म हो जाता है। कुछ लोग उबर जाते हैं, कइयों का भविष्य डावांडोल हो जाता है।

एक अच्छा, समझदार और पॉजिटिव टीचर स्टूडेंट्स की रीढ़ होता है। और मज़बूत रीढ़ पर ही पूरा स्ट्रक्चर टिका होता है।