Sunday, January 31, 2016

कह दो कि घण्टों गुज़ारते हैं वक़्त, जहाँ हुई थीं मुलाक़ातें,
......अब तो रहगुज़र भी हमें घर जाने को कहते हैं..!

प्रेम

ज़िन्दगी कोई तीन घंटे की फ़िल्म या रोमांटिक नॉवेल थोड़ी है, जिसमे प्रेम करने वाले जोड़े घर- परिवार ,समाज और विलेन्स से लड़ कर अंततः जीत जाते हैं जैसे कोई मिसाइल का आविष्कार कर लिया हो या एवेरेस्ट की चढ़ाई कर ली हो। इसके बाद की लाइफ  फ़िल्म और नॉवेल में दर्ज़ नहीं होती। कइयों की ज़िन्दगी भयानक और दयनीय हो जाती है तो कई खुशहाल लाइफ बसर कर रहे होते। हरेक की प्रॉब्लेम और प्रायोरिटी अलग अलग हैं। 

-प्रेममें यथार्थपरक विषयों के अध्ययन की भी ज़रूरत है।

Sunday, January 24, 2016

प्रेम

जो रो नहीं सकते, वे प्रेम नहीं कर सकते।
रुदन और प्रेम का स्रोत एक ही होता है........!

Wednesday, January 20, 2016

राजनीति

श्रीराम को वनवास और भरत जी को राजगद्दी मिली थी। भरत वन में श्रीराम से मिलने गए जिसमे मुलाक़ात से ज़्यादा वो राजनीति की सूक्ष्मता समझा गए। राजमुकुट की जगह खडाऊं ले जाना उनके राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण देती है।
सत्ता और शासन  में एक खास वर्ग को खड़ाऊं (जूतों) का भय बहुत ज़रूरी है। राजनीतिज्ञ भरत इस बात को अच्छे से जानते थे कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं। 😁😁 इसलिए उनका राज्यकाल ही शायद रामराज्य के नाम से विख्यात था। सुचारू रूप से 14 वर्ष उन्होंने राजकाज चलाया।
और श्रीराम अगर राजदंड अच्छे से समझते तो इतने कॉन्ट्रोवर्सी में नहीं आते। पहला दंड धोबी को मिलना था। खड़ाऊं पद्धति से!
वर्तमान राजनीति में एक शासक की ज़रुरत पहले है ' मर्यादा पुरुषोत्तम' सिर्फ उपदेशक रहें तो बढ़िया।

** क्षमा के साथ।
श्रीराम और भरत सिर्फ उदाहरणार्थ।

Monday, January 18, 2016

सुबह

तेरी पलकों पे उतरने वाली सुबहो के लिए
तोड़ डाली हैं सितारों की तनाबे मैंने...

Sunday, January 17, 2016

आईडिया!

एक अच्छे आईडिया का दिमाग में आना बिलकुल वैसे होना चाहिए जैसे एक नुकीली पिन पर आप अचानक बैठ जाते हैं फिर झटके से दोगुनी एनर्जी लगा कर उठ भी जाते है।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बदलाव चाहते हैं, तो आज कुछ वैसे ही दोगुने स्पीड से उठिए और खुद के लिये कुछ क्रिएटिव और पॉजिटिव कीजिये। हमेशा दुनिया के लिए फिक्रमंद होने की ज़रूरत नहीं।

योर आईडिया कैन चेंज योर लाइफस्टाइल!
गुड मॉर्निंग.!😊😊👍👍👌👌

Thursday, January 14, 2016

मकर संक्रांति

पतंग उड़ाएं छतों पे चढ़ कर मुहल्ले वाले,
फलक तो साझा है इसमें पेंचें लड़ाए कोई....

––––––

पतंग= फीलिंग्स
मोहल्ला= सोशल साइट्स
छत= टाइम लाइन
फलक= आपकी हमारी वॉल
पेंचें= आप समझदार हैं

"शुभकामनायें मकर संक्रांति की"

Sunday, January 10, 2016

डिमांड्स

मुझे नौलखा मंगा दे रे ओ सैयां दीवाने...'

कितने प्यारे डिमांड्स होते थे पुरानी नायिकाओं के। फ़िल्म शराबी के इस गाने में जयाप्रदा ने जितनी ख्वाहिशें की, अमिताभ बच्चन ने बतौर गिफ्ट उनके घर पहुँचवा दिया।
यार, डिमांड्स के भी स्टैंडर्ड होते हैं... जैसे,
"तुम मुझको चाँद ला के दो..... मुझको तारे तारे ला के दो..." इत्यादि...  और नायक नायिका की हर ख्वाहिश पूरी करने का जज़्बा रखते थे।
अब क्या हो गया है मुई हेरोइनीयों को जो रोती फिर रही हैं, "डी जे वाले बाबू मेरा गाना चला दो....."
फिलिम कसम बाप, मेरा खून खौल उठता है इस गाने को सुन कर। इतना काहे स्टैण्डर्ड गिरा रही देवियों के पसंद का गाना सुनने के लिये इतना चिरौरी कर रही, एक एप्प ही डाउनलोड कर लो 😣😣😥😱
 

Saturday, January 9, 2016

औरतें

अब तक ऐसी -ऐसी संगीन सज़ाएं घर -घर औरतों को दी गयी हैं, जिनकी साक्षी सिर्फ बस वे औरतें ही हैं जिन्होंने सजा भुगती हैं। उसके बावजूद उनके मुँह से सिर्फ च् च् च् की आवाज़ मक्खियों की सी भिनभिनाहट और चींटियों सी एक के पीछे दूसरी का चुपचाप लौट जाना , यही विधान रहा है।

मर्द इतने बेवकूफ नहीं होते कि अपनी बर्बरता की नुमाइश करें। वे कहीं दयालु, कहीं प्रेमी, कहीं वत्सल और कृपानिधान बनकर ज़्यादा दिखना चाहते हैं कि आक्रामकता भी उनका पौरुष लगे।

Thursday, January 7, 2016

दुनिया में प्यार की एक है बोली

संसार की बड़ी से बड़ी भाषा हर विधा के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। अंग्रेजी या उर्दू में घनाक्षरी लिखें तो वो खूबसूरती नहीं आएगी जो ब्रजभाषा में आएगी। ग़ज़ल के लिए हिंदी साहित्य ज़रा धीमा पड़ जाता है वहीँ उर्दू में बात कुछ और होती है। उर्दू की मिठास भले चाशनी जैसे मुँह में घुली हो लेकिन उर्दू शहरों में पली बढ़ी है। जबकि हिंदी और इसकी उपभाषाएं या बोलियाँ गांवों में जवान हुई हैं। खेत की मेढ़, अमराई, पनघट , नदियां, तालाब, बड़, पीपल ,  लहलहाती फसलों का जो सौंदर्य हिंदी में आया वह शायद उर्दू में फीका रहा है।

'विधिना करो देह को हमरी
तोहरे घर की देहरी
आवत जात तोरे चरण के धूरा
लगत जात हर बेरी....'

यह भारतीय नारी ही अपने प्रियतम से ऐसा कह सकती है। बोलियों में लोकगीत किसी बड़े साहित्यकार के नहीं रचे होते। जाने क्या सोचकर लिखते हैं के अनपढ़ गांव वाले रचनाकार की अभिव्यक्ति का चमत्कार भी दंग कर देता है....

तैने ले लई प्राण अहिरिया
तिरछी मार नज़रिया
एक पुरा एक ही बखरी एक ही चलत डगरिया
एकई उठन एक ही बैठन, एकइ परत सेजरिया
अब तो छुरी तुम्हारे हाथन, घीच करे गिरधरिया....'

[अहिरन (राधा) ने तिरछी नज़र मार कर प्राण ले लिए। एक गाँव एक मोहल्ला और एक ही रास्ता है। साथ उठना बैठना और सेज भी एक है। अब छुरी तुम्हारे हाथ में है और हमने गर्दन आगे कर दी है।]