Saturday, April 28, 2012


वो कहता है, "खफ़ा हो के हँसते हो?"
वो चाहता है, 'नाराज़ हूँ तो नाराज़ लगूं ...!'
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...... "अजीब है.......!!!"

Friday, April 27, 2012


तुम लगाते सिर्फ चक्कर ही ...
हम मनाज़िर से दिल लगाते हैं...!
तुम्हारी नज़र सिर्फ लहरों पर होती है....
हम समंदर में डूब जाते हैं..!
तुम आते हो घर लौट के, बस हवा खा के ज़माने की....
हम ज़ख्म खा के भी देखो कैसे ठहाके लगाते हैं......!

Thursday, April 19, 2012

मेरी बेखुदी ने बचाया मुझे गुमराह होने से...
और लगजिशों ने मेरी, हर क़दम तुझ तक पहुँचाया मौला......!!!

(बेखुदी= बेहोशी, लगजिश = लडखडाहट)

Tuesday, April 17, 2012


बचा ले बकाए हयाते-खिरद से, और बेखुद बना...
बस यही आरजू, तेरे क़दमों में दे दूँ अब जां मेरे मौला

Monday, April 16, 2012

सोचूं, पी ही लूँ अब समंदर सारा..
मेरी तिश्नगी तू इतनी ही बढ़ा दे मौला...!

Friday, April 13, 2012


देखो उन्हें जो, जिगर के ज़ख्मो को सी रहे..
और उन्हें भी, जो खूने दिल हैं पी रहे...!
तुम तो रोते हो मरनेवालों पर..
हम रोये उन्हें देख, जो ऐसे जी रहे....!!

तू चाहे तो कर सकता है कत-ए-तअल्लुकात कभी भी...
.......मैं न रहूँ तो जिंदगी में तेरे कोई बखेडा ही न रहे.....!

Thursday, April 12, 2012

छोटी सी पुतली के पट पर, किस किस का प्रतिबिम्ब उतारूँ 
भीड़ खड़ी है सन्मुख मेरे, किसे छोड दूँ किसे पुकारूं...!

Tuesday, April 10, 2012

है हिम्मत! तो ये दो चीज़ें ले , तभी मुझसे मिल...
इक फूटी हुई तकदीर, और एक टूटा हुआ दिल......!

चीथड़े किये ख्वाब  के कल , फटेहाल किया ये  दिल...
हो गया आज शीशा ज़ालिम, इस दिल को आकर अब सिल..........!

Thursday, April 5, 2012

सखियों, आज ज़रा पुरुषों को याद करिए.. अपने दादा-नाना, पिता, पति भाइयों बेटों को, गुरुजनों के चेहरे, मित्रों के.... पड़ोसियों और राहगीरों के..... खोमचे वालों के मजदूरों  के.... संघर्षों  में जूझते लोगों के....!
हारते लोगों के जीतते लोगों के.....!
नहीं लगे न सारे चेहरे क्रूर.... कुछ तो छल कपट से परे... निष्पाप से लगे होंगे न... ?
ये बुरे तभी लगते हैं जब आपकी छाती पे खड़े होते... छलते हैं.... इज्ज़त लूटते  हैं... धोखा देते हैं... पर सब तो ऐसे नहीं न...? गौर करिए उन पर भी... जो तिल तिल मर रहे हैं ... घुट रहे हैं.. विपरीत हालत से जूझ रहे हैं...और हर माँ- बेटी- बहन को सम्मान देते  हैं..!
कभी देखिये पुरुषों से छ ली महिलाओं को कितनी महिलाए सहारा देतीं हैं? या की उन्हें मिलता है तिरस्कार?
ये संवेदनहीनता है..... स्त्रियों की भरमार के बावजूद स्त्री आगे बढ़ के हाथ  नहीं थामती, अकेली रह जाती हैं..(प्राय:)!
पुरूषों की कविताओं में वर्णन  नख से शिख तक आपके सौंदर्य का मिलेगा, हमारी कविताओं में उनके भेड़िये और जानवर होने के सन्देश मिलेंगे...!(है न?)

'स्त्री ही स्त्री की पीड़ा समझती है'... बचपन में सुना था....' आज नहीं मानती मैं....!'
'स्त्री-स्त्री की दुश्मन होती है'.. जब भी सुना करती थी विरोध करती थी, चीखती थी और भाषण दे डालती थी.." आज चुप हूँ!"
(जानती हूँ ऐसा कह स्त्रियों से बैर मोलना है)
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तो आज आप मूल्यांकन करिए अन्य स्त्री के साथ अपना व्यवहार.... मन झूट न बोलेगा!

"अनुपम कृति है इश्वर की स्त्री... मानती तो हैं न... तो बस अब ज़हर न निकालिए .. उसे अमृत करिए, इतनी शक्ति है आपमें, जानती तो हैं न..!!!"

Wednesday, April 4, 2012

गिरा होता तो उठा भी लेते
मगर वो शख्स नज़रों से उतर गया....!
उसके जाने का नहीं,
गम तो इस बात है कि 
वो गया तो सारा शहर गया!
रूह मिलती है उसकी हर मोड पर ..
जो तलाश में जिया , तलाश में मर गया...!
कल फिर जनाजा उठेगा बस्ती से,
अभी कोई ले के ज़हर गया...!!

Tuesday, April 3, 2012

एक बार राधा जी ने बहुत सारे तोते पाले और उन्हें 'हरे कृष्ण- हरे कृष्ण' जपना सिखाया ...!अब दिनभर तोते हरे कृष्ण कहते.. सखियाँ भी वही कहतीं.. स्वयं राधिका  भी कृष्ण कृष्ण ही जपती..पूरा ब्रज कृष्णमय हो गया..!
.. सांझ के वक़्त राधा रानी नदी  किनारे कृष्ण की प्रतीक्षा में  सखियों के साथ विचर रही थीं.... साथ में प्रिये सखी मणिमंजरी जी भी थीं...!
श्यामसुंदर जी मंद गति से चले आ रहे हैं.. कुछ मलिन मुख लिए.. कुछ ढूंढते हुए से..! राधिके दौड़  पड़ीं... इतने में नारद जी कृष्ण के समक्ष दिखे... राधा वृक्ष की ओट से उनकी बात सुनने लगी...!
नारद जी कहा,"प्रभु, पूरे ब्रज में सिर्फ कृष्ण ही सुनाई देता है... यहाँ तक कि आपस में सारे सखा सारी सखियाँ भी कृष्ण ही संबोधित करते हैं... !"
हरि बोले "......... परन्तु, मुझे तो सिर्फ 'राधा' नाम ही प्रिये है...!"
इतना सुनते हैं राधा के नयन बरसने लगे.. दौड़ के महल में आकर उन्होंने तोतों को  "राधे -राधे "जपना सिखाया.. और समस्त सखियों को भी यही हिदायत  दी...

मणिमंजरी ने कहा, "ये क्या राधिके? तुम्हे लोग तो अभिमानी कह रहे हैं...तुम पर आरोप लगा रहे है... क्या तुम अपने नाम की जय बुलवाना चाहतीहो?"
श्री जी ने कहा" मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है... लोग यही नाम लेंगे.. अब चाहे जो आरोप दो, जो इलज़ाम दो.. कुछ भी कहो सखी...!!!"

(इलज़ाम लगाने वालों ने इलजाम लगाये खूब मगर
तेरी सौगात समझ कर के हम सर उठाये जाते हैं..!)

Monday, April 2, 2012

एक कली मांगी थी तुमसे....

मैंने कहा.. "कृष्ण ने मुझे एक पुष्प दिया था कल.."
वह बोली," बस इक पुष्प? मुझे अपना हार दे दिया उतार के."

और प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी......!! गोपनीय रहा न कुछ!! एक बात .....
"जैसे हम अपना धन छुपा के रखते हैं उसी प्रकार .. अपनी साधना.. अपनीभक्ति अपना प्रेम छुपाना चाहिए... बस मैं जानूं.. तुम जानो...."!

"प्रकट करने से... बस अहंकार और राग-द्वेष का पोषण ही किया..." यदि वो बखान ही कर रही थी तो मुझे धैर्य धारण कर , उसके सौभाग्य की प्रशंसा कर.. प्रणाम ही करना चाहिए था...!

"और उन्हें सार्वजनिक नहीं करना चाहिए था..."!!!!