Friday, October 12, 2018

Me too

देखा जाए तो 'मी टू'  के फेर में 99% महिलाएं आ जाएंगी और 90% पुरुष लपेट में।
बाकी 10%पुरुष ऐसे होते हैं जो कैरियर,  परिवार , समाज के लिए जज़्बा रखे होते हैं। वे क्रिएटिव हैं, इनोवेटिव हैं उन्हें फ़ालतू चीजों को न तूल देने ज़रूरत होती है ना वक़्त होता है। सही मायनों में यही पुरुष हैं। इन्हें सलाम!

रही बात महिलाओं की आंकड़ा शायद 99% से 100% भी हो सकता है।
महिलाओं की इच्छा अनिच्छा अभी भी पुरुषों से एक स्टेप नीचे है। भले ही स्त्री अपने बोल्ड, बेबाक होने का दावा कर ले। माहौल बदला है, रहन सहन, शिक्षा दीक्षा बदली है। थोड़ा बराबर आने दिया गया है। पर अभी भी बहुत गहरी खाई बची है बंधू! ज़रा पांव फिसला नहीं कि अस्तिव की किरचियाँ बिखर जाती हैं। (थोड़ा कहा, ज़्यादा समझना) अच्छी बात है मौका मिला तो कहने का साहस जुटा रहीं स्त्रियां। अब इसमें कितने जेन्युइन केस आएंगे और कितने बस बदले की भावना लिए हुए। ज़ाहिर है अधिकतर मामले ऐसे होंगे जहाँ पहले स्वेच्छा से अच्छे संबंध के बाद कारणवश अलगाव की स्थितियों के बाद खार खाए हुए रिश्ते। (100%He Too वाले केस, Me Too की तर्ज़ पर)

ज़रा सी आवाज़ क्या उठायी महिलाओं ने के समाज सकते में आ गया।

'महिला हों या पुरुष समाज के बनाए निषिद्ध दरवाज़ों के पार जाने का दुस्साहस दोनों दिखाते हैं, और उनकी चौखटों में सिर सिर्फ़ महिलाओं के ठुकते नज़र आते हैं।'

इंसान हैं सब... देवता नहीं। परफेक्शन किसी मे नहीं लेकिन उंगलियां उठाने का मौका समाज का कोई तबका नहीं छोड़ सकता। परतें उधेड़ने पे लोग आ जायें तो एक इंसान न बचे फिर। सब के सब कीचड़ से सने मिलेंगे लेकिन सोशल मीडिया पर गर्दभ राग अलापने में अपना पचहत्तर बिगहा का मुँह ज़रूर फाड़ेंगे!

"महफ़िल में बैठ कर न करो तंज हमपर तुम,
मुमकिन है कोई तुमपर भी कीचड़ उछाल दे...."