Thursday, November 24, 2016

संस्मरण/बचपन

तरह तरह के दोस्त होते हैं लाइफ के हरेक स्टेज में। स्कूल के, मोहल्ले के, कॉलेज के, वर्चुअल etc.
मुझे भी खूब सारे फ्रेंड्स मिले और लगभग सबके साथ वैसा ही रिलेशन कायम है जैसा पहले था।
मेरी मोहल्ले की एक सहेली थी। हम अलग अलग स्कूल में थे तो शाम को खेल के मैदान में ही मुलाक़ात होती थी। गजब कॉम्पिटिटिव लड़की थी वो... बचपन की उस छोटी उम्र में ही अजीब सी प्रतिस्पर्धा भर गयी थी उसके मन में, खास कर मुझसे और मेरी एक और सहेली से। जैसे गेम्स में हम किस ग्रुप में हैं, उसे उसी ग्रुप में जाना है। लूडो में कौन से कलर की गोटी हमने सेलेक्ट की उसे वही चाहिए वरना वो वहां से चली जाती थी या रोने लगती थी। मेरी एक और सहेली जो थी वो अपने पेरेंट्स के ट्रान्सफर होने से शहर छोड़ कर चली गयी। बची मैं... वो.. कुछ लड़के और हमसे जूनियर बच्चे। अब कम्पटीशन की 1st पोजीशन पे मैं थी। मैंने अगर लाल फ्रॉक पहना है तो वो भी अपने डैड से लाल मंगवाती, भले ही अंकल नीली फ्राक पहले से ला चुके हों।

'दरअसल हम कॉपी उसकी करना चाहते हैं जिसे आदर्श मानते हैं या फिर ईर्ष्यावश प्रतिस्पर्धा में अड़ जाते हैं कि जैसे भी हो मुझे उससे सुपीरियर दिखना है...।'

धीरे धीरे हम स्कूल से निकल कॉलेज में आए, मैंने लाइफ साइंस चुना। अब मैंने ये सब्जेक्ट लिया था तो उसे भी लेना ही था जबकि उसकी मैथमेटिक्स कमाल की थी। उसके घरवालों ने कहा भी मैथ्स ले लो, हम सब फ्रेंड्स ने भी समझाया। पर उसका जवाब था कि' " तुमलोग मुझे सक्सेसफुल नहीं देखना चाहते हो..." अब बात खत्म.... खैर आगे समय चलता ही जा रहा था, उसके और मेरे मोबाइल कांटेक्ट लिस्ट में same फ्रेंड्स थे। जो मेरे वो उसके। प्यार इत्ता था के जो मुझे अच्छे नही लगते वो उसे भी नही लगते थे... मेरी हर पसंद अब उसकी पसन्द बन चुकी थी वो खाने का टेस्ट हो या रंगों का चुनाव या मेरे बोले जाने वाले तकिया कलाम, phrase, डायलॉग्स यहाँ तक की हाव भाव भी.... 😂

कॉलेज के फाइनल इयर में समोसे खाते हुए एक दिन दोस्तों ने शादी/लव/अफेयर्स और मनपसंद लाइफ पार्टनर्स पे गर्मा गर्म टॉपिक छेड़ी थी। कोई अपने क्रश की बात करता कोई शरमाते हुए छुपा रहा था, कइयों की शादी की बात फाइनल हो रही थी  और कुछ लोग अपने क्लास फेलो से ही इम्प्रेस थे। सबकी कहते सुनते ठहाके लगाते फाइनली मैंने कहा, 'मैं तो शादी करने जा रही अमिताभ से... बाकी तुमलोग अपनी बताते रहना...'
इस पर मेरी सहेली ने कहा, ' तू अमिताभ से कर मैं एक बार try करुँगी फिक्स नहीं हुआ तो सलमान से करुँगी फिर, मुझे भी बॉलीवुड स्टार ही चाहिए..'
मैंने कहा, ' येड़ी है क्या बे, मैं बच्चन से नहीं Amitabh Mishra से शादी करने जा रही। मेरी सगाई भी तय हुई है अगले हफ्ते.....'😂😂😂😂
फिर कैंटीन में जो ठहाके गूंजे थे उसकी खनक कभी कम तो नही होगी, पर सहेली का इस बात पर उदास होना अच्छा मुझे नही लगा था।
खैर समय फिर भी चल रहा..... चलता रहेगा आगे आगे और हम पीछे की स्मृतियों के साथ फ्लैशबैक में कभी कभी ....

ऐसे ही छोटे छोटे तमाम किस्से हैं, मैं शेयर करती रहूंगी।

Tuesday, November 22, 2016

खाकी वर्दी के किस्से

रिटायर्ड फौजी और पुलिस अफसर किस्सों को दिलचस्प तरीके से सुनाने में पारंगत होते हैं।  मोस्टली ' कई साल पहले जब मैं फलाने जगह पर पोस्टेड था....' की लाइन से शुरू होने वाले किस्से आपको बाँध ही लेते हैं। ऐसा ही एक वाक़या मैं शेयर करती हूँ एक बुज़ुर्ग पुलिस अफसर जो अपने कई साल सीनियर अफसर का किस्सा सुनाया करते थे। मैं शायद उस अंदाज़ में न सुना पाऊं पर पढ़ियेगा ज़रूर, थोड़ा लम्बा हो सकता है।

'.... उस वक़्त आज़मगढ़ में दो विरोधी सांप्रदायिक जुलूसों को 144 ज़ाब्ता फ़ौजदारी लगाये बिना उन अफसर ने अपना कमाल दिखाया था।
आप पाबन्दी लगाएंगे तो हम उल्लंघन करेंगे, ऐसा दोनों पक्ष ने स्पष्ट कर दिया था। ज़ाहिर था जुलुस निकले तो सांप्रदायिक झगड़ा हो कर रहेगा। इसलिए एक दिन पहले वे दिन दहाड़े कई छोटी बड़ी गाड़ियां और तमाम फ़ौज- फाटा लेकर जुलुस के रास्ते पर एक बाज़ार में पहुँचे और लगे फीतों से नाप-जोख करवाने। खुले आम अपने अफसरों से राय -मश्विरा भी करने लगे के यहाँ से गोली चली तो कहाँ तक जायेगी और वहां से चली तब कहाँ तक पंहुचेगी।
फिर उसी ताम-झाम के साथ सिविल हॉस्पिटल गए और सर्जन को बाहर बुला कर घोषणा की कि कल के लिए कोई सौ एक एक्स्ट्रा बेड्स क इंतेज़ाम कर लें क्योंकि दोनों जुलुस निकलेंगे और पुलिस तो गोली चलाएगी ही....!
नतीजा, बाज़ार  तो उसी वक़्त बन्द हुआ और अगले दिन भी बन्द रहा। एक भी जुलुस नही निकला...।'

पुलिसिया सूझ बुझ का ये छोटा सा किस्सा काफी शार्ट एंड सेंसर कर के यहाँ पोस्ट किया है तो बातों की वो खुशबु थोड़ी कम आएगी।
इसी तरह कठिन परिस्थितियों में काबू पाने के अनेक किस्से मैंने सुने हैं। शायद शेयर भी करूँ, पर उनकी ज़ुबानी के बिना वो मिर्च मसाला थोडा स्टोरी को बेस्वाद रखेंगे लेकिन बेफायदा नहीं।

- एक सल्यूट खाकी वर्दी को!!💐👲

Thursday, November 17, 2016

बिना अच्छा इंसान हुए अच्छा खद्दर वाला/टोपीवाला/खाकीवाला/सफारीवाला (या कोई भी वाला) होने की उम्मीद करना वृथा है।
एक रूपक का प्रयोग करने की अनुज्ञा मिले तो ऐसा कह सकते हैं कि कार्य कुशलता की धरती में जड़ें * हों और आकाश में फैली शाखाएं** , तभी कोई व्यक्ति विटप हरा भरा, स्वस्थ -सबल रह कर समाज वन के विकास में अपना योगदान कर सकता है। मात्र कार्यकुशलता पर आधारित एकांगी विकास भले थोड़ी देर 'ठीकठाक' होता दिख सकता है लेकिन देखते देखते या  मुरझाने या तो विकृत होने लगता है।
अपने इर्द गिर्द ऐसे कई उदाहरण देख सकते हैं। वृत्ति कौशल्य और मानवीय चारित्रिक गुणों के मिले जुले विकास के दृष्टांत अपेक्षाकृत कम मिलते हैं पर ज़रूर मिलते हैं।
इन दोनों में से किसको अपना अनुकरणीय/अनुसरणीय/आदर्श माना जाए इसके बारे में कोई शक शुबहा नहीं।
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* साधन सम्पन्नता के खाद पानी से पोषित।
** मानवीय हवा धूप का सेवन करती हुई।

But man, proud man!
dressed in a little brief authority...
most ignorant of what he's most assured,
the glassy essence, - like an angry ape!
plays some fantastic tricks
before high heaven,
as make the angels weep!

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" परन्तु इंसान, दंभ से भरा इंसान!
मामूली से अधिकार का जामा पहने
अपने को सर्वज्ञानी समझता है!
वास्तव में .....
जानता कुछ नहीं है!
मंदमति इंसान!..
गुस्से में मतवाले बन्दर की भांति,
ऐसी कलाबाजियां मरता फिरता है कि ,
उन्हें देखकर फरिश्तों को भी रोना आता है...!!!"

Monday, November 7, 2016

रेखा- इश्क़ की अधूरी दास्ताँ

..... इसके आगे की अब दास्तां मुझसे सुन,
..... सुन के तेरी नज़र डबडबा जायेगी...
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आगे की दास्ताँ क्या सुनियेगा...? कुछ कहानियाँ अपने अधूरेपन में ही चार्म लिए होती हैं.... पता नहीं पूरा करने में क्या क्या खोना पड़ जाता है क़िस्मत को.....😊
... कुछ ऐसी ही इनकी कहानी शुरू हुई और एक रहस्य बन गया ....
...पूरे चाँद  की रात जब सारी घरती को भिगो रही थी तब इनकी आँखों की सीप में इक चेहरा मोती बन कर क़ैद हो गया कभी न आज़ाद होने के लिए...
निगाहों के पहरे कसे और जज़्बातों की गिरफ्त ढीली पड़ गयी....
और.... और.... जब रिवाज़ ख़ामोशी ओढ़ते हैं तब आँखों की खामोशियाँ चाहत की ज़मीन तलाशती हैं....

".... एक बादल उधर से चला झूम के
   देखते देखते चाँद पर छ गया
चाँद भी खो गया उसकी आग़ोश में
उफ़ ये क्या हो गया जोश ही जोश में..... "

- हाँ ऐसे ही इश्क़ बादल बन कर आया और बरस कर चला गया ...... लेकिन चाँद का क्या?
अरे! मैं बकवास करने में बड्डे विश करना भूल गयी... 😂😂😂
हैप्पी वाला बड्डे रेखा जी...💐💐💐🎂🎂

#मोहब्बत #की #अधूरी #दास्ताँ #रेखा...

Friday, November 4, 2016

दशहरा

नमस्कार दोस्तों,
आपकी मर्ज़ी आप दशहरा कैसे भी मनाएं.... राम- राम करें या जय दुर्गे... या रावण के गुणों की बखान.... पर उत्सव को उत्सव रहने दें।
ज्ञान के अखाड़े तो रोज़ ही खुले हैं... कुश्तियां होती रहेंगी।

मैं इस बार सेलिब्रेट नही कर रही.... दोनों पैर में चोट है भयंकर वाले दर्द के साथ 😢😢 .. डांडिया, गरबा, दौड़भाग सब ठप्प। तकलीफें हम फॅमिली -फ्रेंड्स और उत्सवों के बीच भूल जाते हैं.... दर्द के साथ स्पेशल भी फील होता है जब कोई केअर करता है। थैंक्यू सबको  साथ बने रहने के लिए 😊😊!  लेकिन.....
मज़ेदार बात ये के मैंने एक दोस्त को अपनी स्थिति बताई तो उसने बजाए हाल चाल पूछने या ' टेक केअर' टाइप बात कहने के उसने तो बात करनी और रिप्लाई करना ही छोड़ दिया। जैसे मैं उसे बुला कर घर के काम करवाउंगी या उसके दोनों पैर मांग लूँगी... 😂😂😂 । ऐसा भी होता है.... थैंकयू उसको भी मुझे बहुत कुछ सिखाने के लिए।

बस यही है अपने अंदर की हार- जीत.... खुद ही फील करना है आप हारे या विजयी हुए..... इतना ही विजयदशमी सार्थक है।

उम्म्म... देखिये बकवास में फिर विश करना भूल गयी...
हैप्पी वाला दशहरा आप सब को... सुख शांति, समृद्धि से भरपूर हो हर दिन... 😊😊😊😊👍👍💐💐

Thursday, November 3, 2016

Quality love

मैं और मेरी फ्रेंड बच्चों को स्कूल से लेने गए तभी एक बच्ची ने अपनी एक क्लासमेट को दिखाते हुए मेरी फ्रेंड से कहा, " Aunty Your son loves her n want to marry her but she loves another boy who is taller and fairer than ur son..... n second thing that boy brings nice lunch also, not like your son's boring tiffin....."
मुझे  आश्चर्य हुआ और खूब हंसी भी आई, उसके  Sentence पर और बोलने के शिकायती मासूम तरीके पर। ये 6 - 7 साल के छोटे बच्चे भी लव etc समझने और जताने लगे हैं। हमने थोड़ी देर उससे बातचीत करके उसे समझाया और आश्वस्त किया कि तुम्हारी फ्रेंड जैसा चाहती है वैसा ही होगा, और नेक्स्ट टाइम से हम भी बच्चों को complan पिलाएंगे ताकि वे भी tall हो सकें, फेयर होने के लिए फेयर & लवली भी लगाएंगे, और बोरिंग टिफ़िन भी नहीं देंगे। भई बनते बिगड़ते रिश्तों का सवाल है। बच्ची खुश होकर चली गयी प्यार से बाय बाय भी किया।
घर आकर मैं सोच में पड़ गयी कि उम्र के हरेक पड़ाव पर होने वाला इश्क़ सच में " क्वालिटी" की डिमांड करता है। ऑप्शन बेटर हो तभी दिल ठहरता है।  हरेक केस में तो नहीं पर 99% केस में यही होता है कि आकर्षण ही पहला स्टेप है किसी के प्रेम में होने का। अट्रैक्शन लुक से लेकर  बोलने बतियाने की कला, या फिर व्यक्ति की कोई खूबी ही... कुछ भी हो सकता है।
हाँ दिल ठहरा है तो वहां से उठ कर आगे भी बढ़ जाता है। यही नेचुरल भी है, आकर्षण और रिश्तों की अपनी मियाद होती है, एक उम्र होती है। सबसे बड़ी बात हमारे बनाये फ्रेम में हर कोई फिट नहीं होता। ठोंक पीट के हम कर भी लें तो एक दिन या तो फ्रेम टूटेगा या फिर तस्वीर गिरेगी।

(रूहानी इश्क़ या  शिद्दत से निभाया प्रेम बाकी बचे 1% में आता है..जहाँ शायद आकर्षण गौण होता हो।)