Saturday, December 31, 2011

नश्तरे जुबां हमे वो इस खूबी से  चुभा गए,
ता उम्र  उसकी दवा को हम ढूंढते रहें या रोते रहें...

चादर हमारे ख्वाब की वो फटेहाल बना गए...
धागे  उनके ख्याल के हम पिरोते रहें या सीते रहें.....!!

नवयुग में युग धर्म का यह नूतन आकार
सरस्वती को अपमानित कर, लक्ष्मी का सत्कार
भय लज्जा को त्याग निरंकुश , खुलकर अत्याचार
चाहे जिस बल कौशल से, सत्ता पर अधिकार
सिर्फ युग-धर्म दुहाई देकर , लोक विरुद्ध सुधार
हरिभक्तों को फांसी देकर हरिजन का उद्धार
किया निरिक्षण इस युग का, यही रहा मेरा शोध..
नव युग है "भ्रष्टों" का युग , हुआ यही आत्मबोध!

Tuesday, December 27, 2011

जानते है आप प्रेम कोई सम्बन्ध (relationship) नहीं, मन की अवस्था (state of mind) है. जब हम सोचते हैं ऐसा कि हम फलां से प्रेम करते हैं तो वह गलत है होता यूँ हैं कि हम प्रेमपूर्ण होते हैं! मैं तो इसे अवस्था ही मानती हूँ, क्यूंकि प्रेम से भरे हुए चित्त से प्रेम ही झरता है रौशनी की तरह सुगंध कि तरह...और जो भी पास आता है अगर वो लेने में समर्थ है तो मिल ही जाता है अगर नहीं तो वो उसकी बात!!!
प्रेम मुक्ति है! वह किसी को बाँधने का प्रश्न ही नहीं उठता.जो पास है उसे मिलता है जो दूर गया... वह गया..!!जैसे दर्पण के सामने कोई रहता है तोउसकी तस्वीर बनती है हटने पर तस्वीर मिटी.. दर्पण फिर खाली! फिर किसी की तस्वीर बनाने को तैयार.!किसी की प्रतीक्षा बनी रहेगी फिर कोइलेने को तैयार!
अगर कोई बंधन है ,कोई रोक है, तो वो आसक्ति है.. न कि प्रेम! आसक्ति रोकती हैकि रुको! नहीं तो फिर  मैं किसे  प्रेम दूंगी ? आसक्ति कहती हैकि तुम ऐसा ऐसा करना तो ही मैं प्रेम करूँ.. तो ये कारागृह में डालना हुआ..  प्रेम तो बे शर्त दान(un conditional giving) है!! प्रेम स्वतंत्र करता है एक व्यक्ति को व्यक्ति बनने देता है वस्तु  नहीं!
आसक्ति प्रेमके मार्ग में एक झूठा सिक्का (hippocracy)है .. तब आदमी सिर्फ संबंधो में जीता है.. जिस दिन पता चले कि मैं प्रेमपूर्ण हूँ ..उस दिन हम आप्तकाम (self fulfilled)होंगे .. और आनंद को उपलब्ध होंगे!!

Wednesday, December 14, 2011

मन का खेल है सब... मन कभी लहर तो कभी सागर बनता जाता है. जब विचार उठें तो लहर... जब निर्विचार  हों तो सागर!!!    शायेद यही ध्यान है...
कभी तो यूँ लगता है कि हम हज़ार छिद्र वाले बाल्टी बन गए हैं... जब कुवें में डाले जाते हैं तो  बड़ा शोर होता है... हलचल होती है!
पर जब तक पानी में हैं तभी भरे हुए से प्रतीत हो रहे है... जैसे ऊपर उठते जायेंगे खाली होना शुरू... और वही शोर!! इसी में तो हम खुश हैं...खाली  होने के शोर में...   


हाँ यही हजारों छेद.. हमारे हजारों विचार है...इसी से हमारी उर्जा भी तो कम होती जा रही है. जिस समय निर्विचार  हुए , उर्जा खोने का मार्ग बंद हो जायेगा!
वही उर्जा वापिस  हममे गिरेगी.      मन से खोया है मन से मिलेगा... मन से भटके हैं, मन से पहुचेंगे.. मन ह् रुग्ण है स्वस्थ हो जाए तो मिल जाए जो खोया है...!!...

 फिर क्या, हम ब्रह्म!.. हम परम!! हम सागर....      सत्ता हमारी...!! पर यहाँ हमारे छिद्र, हमारे रंध्र ..हमे खो रहे हैं... चुका रहे हैं...!!!         

Tuesday, December 13, 2011

एक दिन कृष्ण ने राधा के नथ (नाक की मोती) से पूछा :-

'ओ री मोती सीप की तू कौन तपस्या कीन,
सुबरन के ढिग बैठ के.. अधरन को रस लीन'!

(सीप के मोती तुने ऐसी कौन सी तपस्या की है जो सोने के साथ मिल के राधा के अधरों का रसपान कर रहा)

इसपे मोती ने कहा...

"छेड़ छिदो परहित कियों, तजि कुटुंब की लाज...
ओते दुःख मैंने सहे इन अधरन के काज!!"

Monday, December 12, 2011

एक चुटकी नमक

वो रोज पूछते हैं कि कितनी अहमियत रखते हैं मेरी जिन्दगी में.... खैर उनकी बात रहने दीजिए, आदत जो है उनकी....!! अपनी बात करते हैं...

आज डिनर में मैंने अपने पसंद कि सब्जी बनायीं.... बहुत अच्छी रंगत,, बहुत अच्छी खुशबू,,.. मज़ा आया गया देख के... खाया तो उसमे नमक नहीं था.... बाकी सबकुछ बेहतरीन!!

हाँ याद आया!!! उनकी अहमियत तो वही नमक जैसी है.. जो मिसिंग थी !!
हुंह... क्या एक चुटकी नमक की भी कोई अहमियत होती है?

Thursday, December 8, 2011

बड़ी प्रतीक्षा की होगी तुमने, शहनाई बजती होगी... द्वार पे अतिथि आये होंगे.. सहेलियों ने सजाया होगा तुम्हे!...
..फिर नहीं आया दूल्हा... न आवाज़ आयीं घोड़े की टापों की...  फिर खबर आई कि भाग गया है दूल्हा.. लापता हो गया!!  तो तेरे तो सारे सपने धुल धूसरित हो गए होंगे... अहंकार को चोट लगी होगी!!!! बहुत दर्द हुआ होगा.. है न..?. लेकिन.....??
... लेकिन....दर्द से ही कोई जागता है.. पीड़ा चुनौती बनती  है!!

इसे एक अवसर समझो एक नयी यात्रा का... एक नए  सृजन का ... !!!

कसम लो कि हो गयी बात! एक खेल से छुटकारा मिला! समय रहते तुम बच गए...

नाचो क्यूंकि वह समय लापता हो गया है.. बाद में ऐसे व्यक्ति के साथ रहने में पछतावा ही होता...!!
मत लेना सांत्वना किसी की... सांत्वना लेना और देना...सिर्फ मरहम पट्टी है.... भरोसा रखो सर्जरी में..!!!!

Wednesday, December 7, 2011

इधर ख़ामोशी, उधर ख़ामोशी, गुफ्तगू फिर भी हो रही  है,
वो सुन रहे हैं ब-चश्म-ए खंदा, बचश्मे- नम हम सुना रहे हैं!
जो मुस्कराहट से उनकी उठती है नगमाए बेखुदी कि मौजें,
वही तो बनते हैं शेर मेरे जिन्हें वो खुद गुनगुना रहे हैं!!!!!

Tuesday, December 6, 2011

वही तो है आशकी सरुरे निशाते रहती हो जिसमे हरदम
हो गम का अहसास जिसमे पैदा, वह आशकी आशकी नहीं है...!!

वही तो है बंदगी फक़त जो तेरी खुशी के  लिए अदा हो...
तलब कि जिसमे हो लाग कुछ भी वो बंदगी बंदगी नहीं है....!!!