भीड़ या तो समर्थन के लिए होती है या विरोध के लिए। भीड़ का अपना मत नहीं होता। इंडिविजुअल की सोच भीड़ से काफी अलग है, पर उपयोग नहीं हो पाता।
डेवलपमेंट चाहिए, क्रांति चाहिए तो एक जोड़ी डगमगाते पाँव ही काफी हैं रास्ता बनाने के लिए। यही पाँव इतने सशक्त हो जाते हैं के भीड़ का नेतृत्व करते हैं।
भीड़ का हिस्सा कभी मत बनिये, भीड़ कोे अपने सामने रखिये या अपने पीछे।
Thursday, March 31, 2016
भीड़
Tuesday, March 29, 2016
द्रौपदी
स्त्री विमर्श का मूल जिन स्रोतों से प्रवाहित है, उनमें से एक अति मौलिक स्रोत महाभारत की नायिका द्रौपदी है। आधुनिक स्त्री विमर्श आज जिस स्वयंसिद्धा नारी की बात करता है, वह हज़ारों वर्ष पहले व्यास ने रचकर कालजयी आधुनिक पात्र को प्रस्थापित किया है। द्रौपदी का अद्भुत व्यक्तिव समय की कसौटी पर बार बार कसा जाता है और नवीन रूपाकारों में ढल कर आधुनिक रंगों में नारी की प्रतिमा सामने आती है।
द्रौपदी का चित्रण पुरुष श्रेष्ठता के विरोध में आतंरिक शक्ति से दीप्त स्त्री और स्त्री मुक्ति आंदोलन के प्रतीक रूप में किया जाता है।
प्रीत और रीत, भक्ति और मैत्री, संयम और आसक्ति के द्वंद्व का सूक्ष्म संतुलन जैसा द्रौपदी के व्यक्तित्व में निखर उठा है वैसा किसी में नहीं। द्रौपदी का अंतःकरण एक अतिशय स्फूर्तिमय है। वह विलक्षण पाश्विक चैतन्य से भरा है। उसमे अनाकलनीय बुद्धिमत्ता है, और अतिशय विशुद्ध वासना की सीमातीत उत्कटता। ऐसी उत्कटता जो कई बार प्रचंड प्रक्षोभ बन जाती है। विराट और प्राकृतिक नारीत्व का प्रतीक है द्रौपदी।
हिन्दू वर्ल्ड में बेंजामिन वॉकर ने लिखा है,
" her beauty, her pride, her vengefulness and her passion make her the most vivid and intriguing of all the women of hindu legend."
धर्मराज की विदुषी, भीम की स्वामिनी, अर्जुन की प्रेयसि, और नकुल सहदेव की वत्सल मित्र के रूप में स्वतंत्र स्त्रीत्व स्थापित करती द्रौपदी की चर्चा अभी जारी रहेगी क्रमशः...
Wednesday, March 16, 2016
महिलाएं
महिलाओं के लिए
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अपने व्यस्त जीवन की भागदौड़ से एक दिन का वक़्त उस महिला के लिए निकालिये जो आपको एकदम पसंद न करती हो या जिसे आप पसंद न करती हों। ज़रा सा झुक कर देखिये और शांतचित्त सोचिये। हो सकता है उस महिला की कोई मजबूरी हो या समझने में कोई भूल कि रिश्ते बिगड़ गए हों। आप उसके स्थान पर खुद को नहीं रख सकतीं।
एक औरत हर दिन हर लम्हा कितने मोर्चों पर लड़ती है और कितने संघर्ष करती है, कभी रिश्तों में, कभी परिवार में, कभी समाज में, इस बात को एक औरत ही समझ सकती है।
एक बार कदम बढ़ा के देखिये, रूठे को मना के देखिये। यकीनन आपको अच्छा लगेगा।
और अच्छाई रूह की वो खुशबू होती है जो दिल दिमाग और जिस्म पर छायी रहती है।