Monday, July 26, 2010

गाय के कच्चे दूध जैसे सादा हम....
और हमारे नीले नीले रिश्तेदार!!!!
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सर्पदंश का नीलापन तो सह्य है , स्वीकार भी...
पर स्म्रितिदंश का पीलापन???????
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कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है,
प्यास बुझती नहीं की बरसात गुज़र जाती है.......
अपनी यादों से कह दो की यूँ न आया करे,
नींद आती नहीं की रात गुज़र जाती है.....

2 comments:

  1. fabulous....simple words with...simple format and excellent delievery of emotions...pyaash bujhtu nahi aur barsaat gujar jaatui hai...very nice

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