Monday, February 28, 2011

खोल मन के नयन देखो
मैं तुम्हारे साथ ही हूँ!
आस्था हूँ
साधना हूँ
अर्चना
आराधना हूँ,
खोल मन के नयन देखो 
मैं तुम्हारी आत्मा हूँ.
अनल हूँ मैं 
अनिल हूँ मैं
व्योम हूँ जल स्रोत हूँ मैं,
श्वास हूँ
उच्छ्वास हूँ मैं,
प्राण बनकर तुम में निहित हूँ!
रम रही मैं तुम में अहर्निश
मैं कहाँ
तुमसे अलग हूँ?
वेदना की चोट से तुम जब व्यथित हो क्षुब्ध होते,
सांत्वना की रागिनी
मन में तुम्हारी छेदती हूँ!
अंश हो तुम सर्व हूँ मैं,
भ्रान्ति पट,
है बीच में
उस और तुम हो 
इस और मैं हूँ.
गहन अंतर में तुम्हारी
जल रहा जो धीर गति से
मैं वही हूँ दीप उसकी
ज्योति भी हूँ! खोल मन कनयन देखो
मैं तुहारे साथ ही हूँ!

No comments:

Post a Comment