यही कोई हम आठ -नौ साल के रहे होंगे उस वक़्त. हमारे बुआ-चाचा सब कॉलेज जाते थे और हम स्कूल . उनकी कलरफुल कापियां /किताबें हमे खूब अट्रैक्ट करती थीं क्यूँकि हमारी कॉपियां स्कूल की छपी होती थीं सब एक जैसी भूरे रंग की और DAV public school लिखा होता था.
हमे याद है बुआ की एक ऐसी ही कॉपी थी जिसके पीछे बड़े बड़े अक्षरों में BPMA लिखा हुआ था., जिसका फुल फॉर्म था 'बिहार पेपर मिल्स असोसिएशन '. हमने वहीँ रंगीन अक्षरों में BPMA का नया फुल फॉर्म लिख डाला ' बीडी पीये मज़ा आवे' :D. कॉलेज में उनकी साइकोलोजी की लेक्चरार ने देखा तो पूरी क्लास के सामने ही उनकी बैंड बजाई थी . ;)
शाम को जब हम खेल कर घर वापिस आये तब मेन गेट से ही खतरे का आभास हुआ, दादा-दादी, मम्मी- पापा ,चाचा बुआ सब वहीँ थे और एक साथ सबने क्लास लगा दी :) . कौन पहले बोला और कौन बाद तक याद नहीं, पर मेरी जो आरती उतारी गयी थी उसकी रौशनी अब तक रौशन है और धूप अगरबत्ती की खुशबू, आहा -' वो कभी भुलाई न जा सकेगी.....' !
;) :P
Sunday, April 2, 2017
BPMA
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