Tuesday, February 16, 2016

असहिष्णुता


जिसे हम सहन न कर सकें वह असहिष्णुता है। कुछ समय से देशभक्ति- देशद्रोह, धर्म, जाति, मन्दिर, मस्जिद ,गाय आदि को लेकर देश भर में कोहराम मचा हुआ है। तमाम राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और सिनेमाई लोग चीख चिल्ला रहे हैं, क्रोध से उफन रहे हैं। शांति से सोचें तो क्या इतना क्रोध घर में अम्मा, दादी, नानी, चाची, बहन और बेटी के लिए निर्धारित नियमावलियों के लिए आया जो सदियों से आपके नियमों और हुक्मदारियों को सहन कर रही है?

हाँ, स्त्री का अपना धर्म नहीं होता। न जाति होती है और नहीं अपना गोत्र। जन्म के बाद पिता के धर्म में रहती हैं और विवाहोपरांत पति का धर्म अपनाती हैं।
सब छोड़ती आई है स्त्री, संपत्ति में हिस्सा तक। ये नियम क्या सहन करने योग्य है? स्त्री के बराबर असहिष्णुता को सहन करने वाला पशु भी नही होता। जानवरों को मन मुताबिक अगर भोजन न दो तो वह सेवा में कोताही करेगा। पर स्त्री, आपके जाति गोत्र को मैडल की तरह लटका कर आपके आँगन में खुद को रोपने की कोशिश में हलकान रहेंगी। भले ही समाज और परिवार ने उसकी जड़ें उखाड़ दी हों।
स्त्री मर्यादा की स्वामिनी तब तक है जब तक वह हर जगह अपना इंसानी अधिकार छोड़ती आई है। वरना जिन्होंने चुपचाप सामाजिक कठोर और निर्मम नियमावलियों को नहीं सहा, वे कुलटा - कर्कशा, कुलक्षिणी और कुलबोरन जैसे संबोधनों से नवाज़ी जाती हैं।

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