Tuesday, April 12, 2016

द्रौपदी 2

आधुनिक साहित्य में द्रौपदी के पुनः सर्जन के क्रम में एक प्रश्न यह भी आता है कि क्या द्रौपदी स्त्री के स्वतंत्र रातिकाम की अभिव्यक्ति है? या द्रौपदी की कामभावना स्वछंद है? जब हम महाभारत को पढ़ते हैं तब ज्ञात होता है कि उनका दाम्पत्य जीवन यद्यपि पूर्वनिर्धारित नियमों की परिधि में संचालित है तथापि आर्यसंस्कृति की मूलभूत वर्जना- योनिशुचिता विषयक वर्जना को वह अपने अनूठे बहुपतित्व युक्त स्वरुप के कारण नकारता भी है। यह भी स्पष्ट है कि अपने पांचो पतियों के साथ उनका दाम्पत्य भिन्न भिन्न कक्षा पर अवलंबित है।
सौंदर्य, शक्ति, बुद्धिमत्ता, वीरता, संवेदनशीलता, वैचारिक रुझान, प्रत्येक बिंदु पर भिन्न भिन्न कक्षा पर खड़े अपने पांचो पतियों के साथ उनका दाम्पत्य सफल रहा है।
पांचों के साथ मिलकर द्रौपदी एक ऐसी इकाई का सर्जन करती है, जिसमे कोई दरार, कुंठा या ईर्ष्या का अस्तित्व नहीं है।
काम्यकवन में अर्जुन के विरह में संतप्त द्रौपदी के शोक में उसके अन्य पति भी सहभागी हैं। उनका दाम्पत्य इतना आकर्षक और सहज रहा है कि युधिष्ठिर ने कहा भी था कि पुरुष जैसी स्त्री की कामना करता है वैसी ही द्रौपदी है।
द्रौपदी न केवल पंचकन्याओं में गिनी जाती है अपितु श्रेष्ठ पतिव्रताओं की पांत में स्वयं को शामिल करवाकर वह 'पतिव्रता' शब्द को एक नया अर्थ विस्तार भी देती है।
पांडवों की एकता को उन्होने अक्षुण्ण रखा। उन्हें शक्ति प्रदान की तथा द्युत प्रसंग से लेकर युद्ध तक संरक्षण भी प्रदान किया।

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