Tuesday, January 10, 2017

मेरा शहर

बिना मेरी हाँ-हूँ सुने उसने अपनी बात जारी रखी, "यार रश्मि,  कुछ दिनों पहले ऐसा लग रहा था मानो शहर की सारी  खूबसूरत लड़कियों की शादी हो गयी.... सब की सब आई ए एस अफसरों, इंजिनीअर्स   और डॉक्टर्स  की बीवियां हो गयीं हैं........... रह गयी सिर्फ सरफिरी चंद  शोध छात्राएं और 'धैर्य-कुमारियाँ'!
सारे सपने ब्लैक एंड वाइट हो गए थे । शहर धीरे -धीरे मरता जा रहा था ,नौकरी विकास और 'प्रेम; की गुंजाईश कम हो गयीं  थीं... मुझे शहर छोड़ जाना पडा फिर भटकता ही रहा। काफी दिनों बाद जब मेरा थक हार के  खाली हाथ लौटना हुआ यहाँ तो स्टेशन पर पांव  रखते ही अपने शहर  की बत्तियां  दिखी तो लगा सारा  शहर बाहों में आ गया,टिम -टिम , दिप -दिप  जैसे जादुई चिराग, जैसे चूल्हे की आग जैसे गर्म अलाव, फिर बत्तियां अपनेपन के गर्मी से भर गयीं दिल में सच ....आई मिस्ड माय टाउन , रियली!"

-फिर मुझे भी अच्छा लगा उस से बतियाना!

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