Wednesday, October 4, 2017

नागपंचमी

कहते हैं रावण ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए नागों को परास्त किया था जिनमे तक्षक और वासुकि भी थे। बाद में नागवंश की स्थापना हुई जो उस समय केरल , तमिल नाडु और श्रीलंका तक थी। ये वंश भी चार उपवंशों में है। जहां अलग अलग नागों की पूजा होती है। और इसी के बाद श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को नाग पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।
हनुमानजी ने लंका जाने की जो उड़ान भरी थी वो नागप्रदेश से होकर ही था। वहां उनकी मुलाकात नागमाता सुरसा से हुई थी। नाग को कुल देवता बना पूजने वाले नागवंशी वैसे तो पूरे भारत मे हैं पर सबसे ज़्यादा केरल, कर्नाटकके कुछ भाग और तमिल नाडू में हैं।
आप दक्षिणभारत में कहीं भी घूम लीजिये, पीपल के नीचे नाग नागिन की मूर्तियां ज़रूर दिखेंगी। ये वस्तुतः कालसर्प दोष निवारण के लिए ये मूर्तियां स्थापित कराई जाती हैं। दक्षिण भारतीय सामान्यतः सांप नही मारते। आज कई जगह नाग पंचमी पूजा देखने का अवसर मिला। कई मंदिरों में सांप की बाम्बी तथा मैदान बगीचों में सांप की बांबी के पास पूजन हुए थे। भोग प्रसाद में अधिकतर दूध, अंडे, लावा, और लड्डू थे।

एक दिलचस्प वाक़या मैं बताती हूँ। सोमवार को कहीं जा रही थी रास्ते में बहुत से लोग लाठी डंडे के साथ हो हल्ला करते दिखे। मैं आगे जाकर एक आदमी से पूछी कि क्या हुआ तो उसने एक सर्प को दिखाया जो किसी गाड़ी के नीचे आ कर मर गया था और वे लोग उसकी बॉडी लेने के लिए झगड़ रहे थे। ये नागवंश से जुड़ी हुई जाति थी और इनका मानना है कि श्रावण में मरे सर्प का अंतिम संस्कार करना पुण्यदायी होता है और वहभी सोमवार को और कालसर्प दोष हो या अकाल मृत्यु इनसब से उबर जाते हैं।
ख़ैर अपनी मान्यताएं और अपना महोत्सव!
उत्सवों और शुभकामनाओं के लिए जितने भी दिन हों कम हैं।

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