Tuesday, August 24, 2010

प्रेम नहीं होता परिभाषित
रहता मात्र नयन में ,
मन वंतर संवत्सर वत्सर
कब बंधते लघु क्षण में
रहते सभी अनाम - न कोई कभी पुकारा जाता ,
रह जाती अभिव्यक्ति अधूरी ,
जीवन शिशु तुतलाता !!!!!!!

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