Wednesday, August 25, 2010

लम्बे सफ़र में जाने कब शाम हो जाये
इसलिए यादो की चिरागों को जलाये रखते हैं ।

दूर रहते हुए भी गजब एहसास है करीब होने का
चाँद हम तो आपको पलकों में छुपाये रखते हैं ।

साथ गुज़ारे लम्हात की जुस्तजू में हम,
जुदाई की ज़ुल्मत को भी मिटाए रखते हैं।

ये तो बड़ी तोहफगी हुई आपकी यादों की,
ये आपकी नुमाइंदगी कर हमे ही बहलाए रखते हैं।

हम तो शाएरी बन गए हैं शाएर चाँद के
जो हमे शामो सहर जेहन में बसाये रखते हैं।

नज़रें मिलेंगी आपसे तो ज़मीन पे जन्नत उतर आएगा,
फिल हकीक़त है ये , इसलिए तो नज़रें झुकाए रखते हैं.

1 comment:

  1. mindblowing...urdu ke sabdon jais tohfagi ka matlab bhi sath me den toh behtar rahega...

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