Tuesday, August 24, 2010

मेरे सपने में वो आयी
इठलाती बलखाती लो मुझे देख मुस्काई,
चन्दन सा वह गौर बदन, सरस सुमधुर बांकी चितवन ,
चेहरे की छटा का क्या कहना जैसे दिव्य ज्योति का जलना,
बालों में घटा लहराई थी हर और खुमारी छाई थी।
सपने में उसे देखा मैंने , बस नयन खुले और बोल पड़े ...
" रे दुष्ट! तू चाहता है क्या?
क्यूँ मुग्ध मुझे देखा करता?
तू समझ मुझे नहीं पायेगा।
सब खो के यहीं रह जायेगा"....
विस्मित सा मैंने सब देखा, संकोच छोड़ मैं बोल पडा
"मैं नहीं मुग्ध तेरे नयनो पे , हैं वे ही मुझे छेड़ा करते".....

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