Tuesday, April 3, 2012

एक बार राधा जी ने बहुत सारे तोते पाले और उन्हें 'हरे कृष्ण- हरे कृष्ण' जपना सिखाया ...!अब दिनभर तोते हरे कृष्ण कहते.. सखियाँ भी वही कहतीं.. स्वयं राधिका  भी कृष्ण कृष्ण ही जपती..पूरा ब्रज कृष्णमय हो गया..!
.. सांझ के वक़्त राधा रानी नदी  किनारे कृष्ण की प्रतीक्षा में  सखियों के साथ विचर रही थीं.... साथ में प्रिये सखी मणिमंजरी जी भी थीं...!
श्यामसुंदर जी मंद गति से चले आ रहे हैं.. कुछ मलिन मुख लिए.. कुछ ढूंढते हुए से..! राधिके दौड़  पड़ीं... इतने में नारद जी कृष्ण के समक्ष दिखे... राधा वृक्ष की ओट से उनकी बात सुनने लगी...!
नारद जी कहा,"प्रभु, पूरे ब्रज में सिर्फ कृष्ण ही सुनाई देता है... यहाँ तक कि आपस में सारे सखा सारी सखियाँ भी कृष्ण ही संबोधित करते हैं... !"
हरि बोले "......... परन्तु, मुझे तो सिर्फ 'राधा' नाम ही प्रिये है...!"
इतना सुनते हैं राधा के नयन बरसने लगे.. दौड़ के महल में आकर उन्होंने तोतों को  "राधे -राधे "जपना सिखाया.. और समस्त सखियों को भी यही हिदायत  दी...

मणिमंजरी ने कहा, "ये क्या राधिके? तुम्हे लोग तो अभिमानी कह रहे हैं...तुम पर आरोप लगा रहे है... क्या तुम अपने नाम की जय बुलवाना चाहतीहो?"
श्री जी ने कहा" मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है... लोग यही नाम लेंगे.. अब चाहे जो आरोप दो, जो इलज़ाम दो.. कुछ भी कहो सखी...!!!"

(इलज़ाम लगाने वालों ने इलजाम लगाये खूब मगर
तेरी सौगात समझ कर के हम सर उठाये जाते हैं..!)

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