Monday, September 3, 2012

२ सितंबर २००९ ... उनसे मेरी आखिरी बात हुई थी.... पूरे १७ मिनट ४० सेकेण्ड की बात चीत में लाखों दुआएं और शुभकामनाएं शामिल थीं.... उनका अंतिम वाक्य मेरे लिए यही था," रश्मि, तुम्हारी अपनी आइडेंटिटी है... दो कुल ही क्यूँ पूरे राष्ट्र का नाम रौशन करो.... सिर्फ मिसेज़ अमिताभ बन कर ना रहना... रश्मि मिश्रा हो और बनी रहो.... तुम्हारे नाम से हम जाने जाएँ तो ये फक्र की बात होगी.... सदा सुखी रहो......" 
मैं उ
स वक्त बंगलोर के सी. एम्. एच अस्पताल में थी.... मेरी आँखों में आंसू थे और बोलने को शब्द खत्म थे....!
आज के दिन ही यानी चार सितंबर २००९ को वे हमे छोड़ के चले गए सदा के लिए..... और उनसे बात चीत का क्रम भी टूट गया... जिनसे मैं हर दिन बात करती थी.... मैं फोन किया करती घर में लोग कह देते कि बीमार हैं... सोये हैं अभी इंजेक्शन दिया गया है.. इत्यादि.. १५ वें दिन मुझे खबर मिली थी कि दादाजी नहीं रहे .... मुझे उनकी मृत्युं का समाचार देने की हिम्मत किसी में ना थी..!
"मेरी भी मृत्यु हो चुकी इसी के साथ.. हाँ साँसे चल रही हैं.. थोडा होश भी है...."!

जहाँ मुझमे और मेरी जीवन शैली में लोगों ने.. रिश्तेदारों ने... सिर्फ मीन मेख ही निकाले....मुझे अच्छी बेटी.. अच्छी बहु.. अच्छी पत्नी इत्यादी होने के उपदेश ही मिले... मैं कभी किसी के लिए परफेक्ट ना रही.. विवाहपूर्व और विवाहोपरांत भी......!
उनके लिए.... मुझसे अगर कोई परफेक्ट हो तो वो इंसान ना होगा ... उनकी नज़र में मैं थी परफेक्ट! और मुझे फक्र है...!
इतना प्यार मुझे किसी ने ना दिया.... जितना की उन्होंने,..."ना भूतो ना भविष्यति" की तर्ज़ पे.... इतना प्रेम शायेद कोई दे भी ना पाए...!
"आज मेरे दादाजी की तीसरी पुण्यतिथि है...... बहुत मिस कर रही हूँ.... बहुत...."

'लव यू...... बाबाजी....'

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