आदमी के बदन पर दो गज कपडे की तरह है औरत...जिस दिन यह कपडा फटा आदमी क्या पूरा घर नंगा हो जाएगा...|
हर मोर्चे पे अकेले संघर्ष करती लडती औरत.... ! तकलीफ में भी होती हैं तो कभी चौराहे पे जा कर नहीं रोती... घर के उस कोने में जा के रोती है जहाँ कोई देख न पाए....!
.....औरत का छिप कर रोना, सिर्फ रोना नहीं , एक लोक गीत है जो ज़िन्दगी की तपिश, आवाज़ और लय से निकले आदमी को आदमी और घर को घर बनाये रखने का एक जज्बाती सलीका है.... हुनर है.... एक कला है.....!
हर मोर्चे पे अकेले संघर्ष करती लडती औरत.... ! तकलीफ में भी होती हैं तो कभी चौराहे पे जा कर नहीं रोती... घर के उस कोने में जा के रोती है जहाँ कोई देख न पाए....!
.....औरत का छिप कर रोना, सिर्फ रोना नहीं , एक लोक गीत है जो ज़िन्दगी की तपिश, आवाज़ और लय से निकले आदमी को आदमी और घर को घर बनाये रखने का एक जज्बाती सलीका है.... हुनर है.... एक कला है.....!
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