Friday, October 14, 2011

एक  मित्र मेरे देर रात घर लौट रहे थे.. वर्षा के दिन धीमी धीमी फुहार. रस्ते में वहां के विधायक महोदय मिले, कहा जनाब बिना छाते के...!
वो कहना नहीं चाहते थे कि छाता नहीं है .. न ही अभी खरीद सकते हैं.. सो उन्होंने कहा " ये एक अधय्त्मिक अभ्यास है ध्यान  है.. प्रयोग है..! परमात्मा वर्षा कर रहा है और तुम छाता लगाये  खड़े हो?बंद करो छाता.. ज़रा देखो बड़ा इल्हाम होगा. रिविलेशन होगा.. उद्घाटन होगा.. परमात्मा दे रहा है चखो"!!
विधायक जी को भरोसा न आया पा सोचा हर्ज क्या है...! दुसरे दिन क्रोधित लौटा...कहा.."मजाक की सीमा होती है . घर पहुच  कर मैंने ये प्रयोग किया ... ठण्ड लगने लगी .. शरीर कांपने लगा..मुझे लगा क्या मूर्खता कर रहा हूँ.. मैं पागल हूँ"?

मित्र ने कहा..              ये क्या कोई कम है पहले अभ्यास में इतनी अनुभूति...!!! ये उपलब्धि है... किये जाओ.. और भी आगे... अनुभव होगा परमात्मा का!!!!

(जो आप जगत में देख रहे हैं... वह जगत में नहीं है... वह आपका डाला हुआ है..!! पद लोलुप जो पद में देखता है.. पागल होकर लोग दौड़ते रहते हैं...!!!
कुछ पल्ले पडा......??)

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