Friday, October 14, 2011

आज एक कहानी छोटी सी, एक मनोविज्ञान के प्रोफेसर हैं. उनका इकलौता बेटा भोजन नहीं कर रहा. पति पत्नी बड़े परेशान.. डांटा.. फुसलाया... सब उपाए किये पर कुछ नहीं. प्रोफेसर साहेब ने कहा, ठहर, मनोविज्ञान का उपयोग करना चाहिए. तो उन्होंने लड़के से कहा कि देख, अपना कोट पहेन, टोपी लगा, छड़ी हाथ में ले.. बाहर जा .. तू समझ कि तू हमारा मेहमान है.. अतिथि!!!
लड़का प्रसन्न .. बच्चे हमेशा अभिनय में बड़ा रस लेते हैं.. जल्द ही भेस बदला..बड़ी तेज़ी से बहार. पिता ने कहा, घंटी बजाना हम स्वागत करेंगे.. तू मेहमान..
लड़का गया.. थोड़ी देर में उसके नन्हे जूतों कि आवाज़ सीढ़ियों में सुनाई पड़ी.. घंटी बजाई,, दरवाज़ा खुला.. पिता ने स्वागत किया, आइये आप मेहमान हैं हमारे.. वक़्त पे आये.. भोजन तैयार है...लगाऊ?
लड़का टेबल पे बैठा, टोपी उतारी छड़ी रखी... पिता ने कहा जो रुखा सुखा है.. स्वीकार करें.. अतिथि!
लड़के ने कहा , "क्षमा करिए मैं अभी अभी भोजन कर के आया हूँ."

(जब अभिनय ही था... तो पूरा ही उसने किया..... आप क्या कहते हैं...?)

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