Wednesday, October 19, 2011


सुना है गणित और तर्क शास्त्र के अध्यापक थोड़े झक्की और सनकी होते हैं... खास कर अवकाश प्राप्त हों तब..अपने परिचित १ प्राध्यापक हैं... ऐसे ही पर क्या सचमुच.....??
मैं गयी थी उनके घर देखा कि फूलों को पानी दे रहे हैं..एक टीन का फव्वारा था हाथ में..लेकिन पानी उसमे से गिर ही नहीं रहा था...वे खड़े हैं मूर्तिवत!! जब गौर से देखा तो उस फव्वारे में पेंदी भी नहीं थी... मैंने कहा कि 'आपको ख्याल नहीं रहा .. इसमें पेंदी नहीं है".. उन्होंने अजीब सा घूर और कहा.. "ख्याल तू रख देख फूलों को.. ये भी प्लास्टिक के हैं"!!
वाह रे पल्स्टिक के फूल.. न खिलना न मुरझाना... शाश्वत दीखता है.. सनातनी है...
वैसे ही जैसे मंदिर में भगवन कि मूर्तियां... न जन्मती हैं न मरती हैं...सनातन है.. और आप उसके सामने घुटने टेकते हैं...
कितना आसान है..झूट कि पूजा करना और जीवंत कि अवहेलना... आप इतने मुर्दा हो गए हैं कि मरे हुए को ही पूजते हैं,...
मूर्ती के सामने झुकने से हमारा अहंकार चोटिल नहीं होता है....क्यूंकि इसके मालिक हम हैं.. बाज़ार से लाया है.. जहाँ बिठाने का मन बिठा दिया.. मन हुआ भोग लगाने को लगा दिया.. देवता सो जाते हैं जब हमारा मन होता है.. पट बंद... भगवन के रूप में खिलौना मिला है हमे..!!
हाँ किसी व्यक्ति के सामने झुकते हैं तो हमारे अहंकार को चोट लगती है.. ध्यान रहे.. यही अहंकार श्रद्धा कि बाधा बन जाती है... यहाँ तर्क बाधा नहीं बनती जितना अहंकार!!
तर्क तो तरकीब है अहंकार को छुपाने कि... कि हम कह देते हैं कि कैसे झुकें..जहाँ दिल झुका है वहीँ सर झुकेगा, ऐसा भी कहा है हमने...
तब मुश्किल और बढ़ेगी जब ऐसा आदमी न मिले कि आप झुको... क्यूंकि आपका तर्क सदा कुछ खोज लेगा...!!

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