Wednesday, October 19, 2011

मिलिए इक जटिल आदमी से...अजीब आदमी से.. वही जो सारथि बना बैठा था अर्जुन के! उस से ज्यादा क्लिष्ट आदमी मैंने नहीं देखा... रथ पे जब बैठा तो कहा अर्जुन को,..( सार है.).' आत्मा अमर है! और जीवन का परम लक्ष्य- प्राप्ति है मुक्ति की'!!! बिलकुल महावीर जैसी बातें!!
मार्क्स जैसी बात कहते तो अर्जुन काट देता  वैसे ही मजे से जैसे स्टेलिन ने १ करोड लोग काट डाले. मार्क्स भी मिलता  अर्जुन को तो दिक्कत न थी.. वह युद्ध में उतर जाता.. महावीर मिलते तो भी वो तलवार छोड़ जंगल में चला जाता.. पर यहाँ मिले कृष्ण!!! अड़चन में डाल दिया... इन्होने कहा कि व्यवहार तो तू ऐसे कर जैसे दुनिया में कोई आत्मा नहीं है.. "काट!... अर्जुन काट"!!!.. और भली भांति जान ले कि जिसे तू काट रहा है काटा नहीं जा सकता!!
यह दो अतियों के बीच कि बात थी.. मुश्किल.. पता नहीं अर्जुन कैसे  अपने संतुलन को उपलब्ध कर पाया!!!
पर भारत अभी तक नहीं कर पाया है.. यहाँ कृष्ण कि बात तो खूब चलती है.. गीता पढ़ी जाती  है घर घर!लेकिन लोगों को गीता से सम्बन्ध नहीं है.. उन्हें छू भी नहीं सकी गीता.....यहाँ या तो वे अति वाले लोग हैं जो हिंसा को मानते हैं या तो वे हैं जो अहिंसा को!
अर्जुन जैसा व्यक्तित्व आज तक पैदा नहीं हुआ..!!!
सैनिक और सन्यासी एक साथ!! इससे ज्यादा कठिन बात दुनिया में संभव नहीं... शायद इस से ज्यादा नाज़ुक मार्ग कोई नहीं है..!! कृष्ण ने अर्जुन को यहाँ समुराई बना दिया... सैनिक और सन्यासी १ साथ! मैंने लाओत्से को जब पढ़ा आज तो बिलकुल कृष्ण जैसा ही पाया..उसने भी यही कहा,' वो युद्ध तो करता  है, लेकिन हिंसा से प्रेम नहीं करता!!!

No comments:

Post a Comment