Monday, April 2, 2012

एक कली मांगी थी तुमसे....

मैंने कहा.. "कृष्ण ने मुझे एक पुष्प दिया था कल.."
वह बोली," बस इक पुष्प? मुझे अपना हार दे दिया उतार के."

और प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी......!! गोपनीय रहा न कुछ!! एक बात .....
"जैसे हम अपना धन छुपा के रखते हैं उसी प्रकार .. अपनी साधना.. अपनीभक्ति अपना प्रेम छुपाना चाहिए... बस मैं जानूं.. तुम जानो...."!

"प्रकट करने से... बस अहंकार और राग-द्वेष का पोषण ही किया..." यदि वो बखान ही कर रही थी तो मुझे धैर्य धारण कर , उसके सौभाग्य की प्रशंसा कर.. प्रणाम ही करना चाहिए था...!

"और उन्हें सार्वजनिक नहीं करना चाहिए था..."!!!!

1 comment:

  1. एक राग माँगा था तुमसे अपना उठा सितार दे दिया-अहा जिंदगी में पढ़ी थी ये पंक्ति| अंकित रह गई स्मृति में|संभव हो तो पूरी कविता डाल दें| आभारी रहूँगा |

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