Tuesday, October 2, 2012

ये क्या है जो मुझे जीते -जागते...
यहाँ बैठे -बिठाए, टेर ले जाता है...
खींच ले जाता है मेरी जीवनी-शक्ति....
क्षण भर में मैं निरीह- निस्तेज सी लगने लगती हूँ.........!
और चेहरा ऐसे धुआं -धुआं जैसे ,
'भाप की दीवार के पीछे का दर्पण...'.... !!!

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