Wednesday, October 3, 2012

तुम्हारी स्मृतियों में एक जकड़ीली टेर है....
एक आमंत्रण............
स्थिति के भवंर में थरथराती हर स्मृति...!
इनके सानिध्य में अकेले जा बैठने का लालच,
मन में लपलपाया करता है...!
इन्हें प्यास का पर्याय मान कर संजोया है...
दुलारते -मनुहारते हुए...
टेरते-सहलाते हुए...!
एक अदीन कामना का उत्ताप..
एक सिंकी सी आश्वस्ति कि, जो कुछ है वह तुम्ही से सम्बंधित है....!
"एक मुझ अकेली के मन की सुंदरता पर आसक्त है..........."

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