अब तक ऐसी -ऐसी संगीन सज़ाएं घर -घर औरतों को दी गयी हैं, जिनकी साक्षी सिर्फ बस वे औरतें ही हैं जिन्होंने सजा भुगती हैं। उसके बावजूद उनके मुँह से सिर्फ च् च् च् की आवाज़ मक्खियों की सी भिनभिनाहट और चींटियों सी एक के पीछे दूसरी का चुपचाप लौट जाना , यही विधान रहा है।
मर्द इतने बेवकूफ नहीं होते कि अपनी बर्बरता की नुमाइश करें। वे कहीं दयालु, कहीं प्रेमी, कहीं वत्सल और कृपानिधान बनकर ज़्यादा दिखना चाहते हैं कि आक्रामकता भी उनका पौरुष लगे।
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