Wednesday, January 6, 2016

रात कोई तो छुपा होगा चुपके से इस फुलवारी में, और अपनी सुगन्धित रंगीन डिब्बियों से कुछ उड़ेला होगा इन फूलों पर, फिर पुलकित हुई होंगी इन पंखुड़ियों की आत्माएं..... या फिर एक सुंदर स्वप्न फिसल कर गिरा होगा निद्रा की गोद से.... . . . चटकना/ खिलना/ सुवासित होना/ गिरना...... फिर जीवन अदृश्य होना, यही नियम हैं प्रकृति के.... अपने नियम हम बदल लेते हैं/ पर बदलते नहीं नियम प्रकृति के... वे अजेय हैं.....!

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