Thursday, June 2, 2016

बस मांगने को अपने हाथ फैलाते रहे
सिर्फ अपनों की खैरियत ही मनाते रहे
भरती गयीं जेबें, रीतते गए मन..!
फिर दुश्मन फायेदा उठाएगा
हमारी गनों का रेंज आधा रह जायेगा
हमारे जहाज पृथ्वी से उठने में देर लगाएंगे
हम पूरी ताकत से फिर कैसे लड़ पाएंगे?
जब शंखनाद होगा 'उस युद्ध 'का.......!

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