Wednesday, November 2, 2011



‎"क़त्ल" करके आये हो
और कहते हो तरन्नुम चाहिए
चलो.... बने रहो गरम तार बदमिजाज.. झाड झंखार
खेलते रहो -
मेरे कदमो से.. मेरी आहटों से..
मेरी कृतियों से , मेरी कनपटियों से...
समाई है मुझमे तेरी भी पत्नी.. तेरी माँ... तेरी बहन भी...
पर कभी न कभी.."सामा- चकेवा" खेलती औरतें..
रौन्देंगी तुम्हे..
उन ढेलों कि तरह...
फिर करवट लूंगी मैं...
गवाही मांगूंगी..
तेरी लाश से... तेरी कुकृति की !!!!

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