Saturday, November 5, 2011

मुस्कान के इरादे अश्कों में ढल गए
आये बहार बन के खिज़ा बन के ढल गए.

हकीकत न जान पाए गम और खुशी कि हम,
थे गुल गले लगाये काँटों में छल गए.

डूबे कभी यादों में खोये कभी ख्वाबों में,

दो कलों में आज के बर्बाद पल गए.

नज़रें तो टिकीं हुईं थी चाँद और तारों पे,
खुद अपनी आँगन के ज़मीन पे फिसल गए.

दूर दूर तक खोजा करती हैं जिन्हें निगाहें
अफ़सोस बहुत पास से मेरे वो निकल गए.

मालूम न चल सका कब मौत आ गयी,
यूँ हौले हौले हाथों से बरसों नकल गए.

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