Thursday, November 10, 2011

ज़िन्दगी तेरी इबादत के तरफदार रहे
लाजिमी था कि मेरी राह दुश्वार रहे.

रो सके आप से लिपट कर न गले मिल पाए
ऐसे तलवार सा खिच जाना तो बेकार रहे.

अब मेरे शहर कि रस्मो का तकाजा है ये
दिल हो नाशाद पर मुस्कान असरदार रहे.

बस इसी जुर्म पे छीनी गयीं मेरी नींदें,
क्यूँ अंधेरों में मेरे ख्वाब चमकदार रहे.

है तेरी याद कि पुरवाई मयस्सर मुझको,
और होंगे जो  बहारों के तलबगार रहे.

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