Tuesday, November 29, 2011

मेरे भक्त वत्सल गोपाल !!
क्या तुमने समझा है इस 'वात्सल्य' को? जाना है अर्थ इसका? हाँ ये ऐसा प्रेम है जैसा माँ का छोटे बच्चे से. बच्चे में कोई योग्यता नहीं है.. न वो तुम्हे कुछ कमा के दे रहा है.. न यूनिवर्सिटी का गोल्ड मेडल है उसके पास! पर माँ उस से अथाह प्रेम करती है... ये प्रेम किसी योग्यता के कारण नहीं है! बच्चा तो अपात्र , अबोध, असहाय है. उस से कुछ उत्तर भी तो नहीं मिलता! इसलिए इस प्रेम में सौदा ही नहीं सिर्फ देना है.. एक बेशर्त दान... वो तो धन्यवाद भी नहीं कहता....!!
और जब मैं कहती हूँ "हरि मोरे जीवन प्राण अधार, और आसरो नहीं तुम बिन, तीनो लोक मझार".. तो ये कह रही हूँ तुमसे कि मैं अपात्र हूँ; असहाय हूँ; कोई योग्यता भी नहीं ;प्रत्युत्तर में देने को मेरे पास तो कुछ भी नहीं है उसी बच्चे कि भांति... फिर भी.... हाँ फिर भी तुम देते हो!!!
जय श्री कृष्ण...!

No comments:

Post a Comment