Monday, May 21, 2012


एक प्रतीक्षा ..
पांच द्वार..!
 'एक द्वार प्रकाश बिखेरने को..
एक नाद तरंग उठाने को...
एक स्पर्श-हर्ष  बरसाने को
एक गंध..
और एक स्वाद हेतु....
स्वागत में...'

पंच-द्वार खुले हैं पूरे...
श्रेष्ट पर्यक में झुलाने को...!
अंतरंग में इस भांति रंग रचाने को..
कि वह आएगा...!

प्रतीक्षा ..मेरी, तुम्हारी  या द्वार की ...?
कण-कण खोले खड़ी हूँ...
कि वह आएगा...
वह आएगा...!
क्या वह आएगा..

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