एक प्रतीक्षा ..
पांच द्वार..!
'एक द्वार प्रकाश बिखेरने को..
एक नाद तरंग उठाने को...
एक स्पर्श-हर्ष बरसाने को
एक गंध..
और एक स्वाद हेतु....
स्वागत में...'
पंच-द्वार खुले हैं पूरे...
श्रेष्ट पर्यक में झुलाने को...!
अंतरंग में इस भांति रंग रचाने को..
कि वह आएगा...!
प्रतीक्षा ..मेरी, तुम्हारी या द्वार की ...?
कण-कण खोले खड़ी हूँ...
कि वह आएगा...
वह आएगा...!
क्या वह आएगा..
No comments:
Post a Comment