कोई तो रात में छिपा ही होगा इस फुलवारी में...
और अपनी अत्याधिक सुगन्धित
और रगीन डिबियों में से
कुछ उडेला होगा फूलों पर...!
फिर पुलकित हुईं होंगी इन पंखुड़ियों की आत्माएं...!!
.. या फिर एक सुन्दर स्वप्न...
फिसलकर गिरा होगा निद्रा की गोद से....!
भय लगता है अब...कि,
गिरे गुए पुष्पों को भी चुनकर
आराध्य के चरणों में अर्पण करते हुए...
कि, जीवन तो दिखाई भी नहीं देता इन फूलों में....!
चटकना, खिलना, सुवासित होना, गिरना.....
और जीवन का अदृश्य होना...
यहीं नियम हैं प्रकृति के...!
हमारे नियम तो बदले भी जा सकते हैं
पर बदलेंगे नहीं प्रकृत्ति के नियम...
वे अजेय हैं....!!!
और अपनी अत्याधिक सुगन्धित
और रगीन डिबियों में से
कुछ उडेला होगा फूलों पर...!
फिर पुलकित हुईं होंगी इन पंखुड़ियों की आत्माएं...!!
.. या फिर एक सुन्दर स्वप्न...
फिसलकर गिरा होगा निद्रा की गोद से....!
भय लगता है अब...कि,
गिरे गुए पुष्पों को भी चुनकर
आराध्य के चरणों में अर्पण करते हुए...
कि, जीवन तो दिखाई भी नहीं देता इन फूलों में....!
चटकना, खिलना, सुवासित होना, गिरना.....
और जीवन का अदृश्य होना...
यहीं नियम हैं प्रकृति के...!
हमारे नियम तो बदले भी जा सकते हैं
पर बदलेंगे नहीं प्रकृत्ति के नियम...
वे अजेय हैं....!!!
No comments:
Post a Comment