Thursday, May 31, 2012

कहने को हम गुप्त, मगर जग जाहिर हैं...
घावों को शब्दों से भरने में माहिर हैं...!
हमारा इशारा भी कुछ ऐसा रुख रखता है..
ये भी हो सकता हैं, वो भी हो सकता है..!
खासियत अपनी शब्दों की हेराफेरी....
जी हाँ चित्त भी मेरी ... हाँ पट भी मेरी...!

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