Monday, October 19, 2015

दुर्गा के नौ रूप

देवी दुर्गा के नौ रूप… हर दिन एक अलग रूप की पूजा… हर रूप की अपनी एक अलग कहानी। हर रूप प्रेरणादायी… जीवन में ऊर्जा का संचार करने वाला… हर महिला में भी तो मां दुर्गा के विभिन्न रूप विद्यमान हैं। हां, यह जरूर है कि महिलाएं मां दुर्गा के इन रूपों को सही तरह से आत्मसात नहीं कर पाई हैं। अगर महिलाएं मां दुर्गा के इन अलग-अलग रूपों में मौजूद दिव्य गुणों को अपने जीवन में पूरी तरह से उतार लें तो जीवन में बड़ा बदलाव आ सकता है। नवरात्र के मौके पर जानते हैं मां दुर्गा के विभिन्न रूपों में मौजूद गुणों और उनसे मिलने वाली सीख के बारे में।
शैलपुत्री से सीखें दृढ़ता– मां दुर्गा का प्रथम रूप हैं-शैलपुत्री। कहते हैं, जब सती अपने पति भगवान शंकर का अपमान नहीं सहन कर सकीं तो खुद को जलाकर भस्म कर लिया। सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैल पुत्री कहलाईं। शैल पुत्री दृढ़ता का प्रतीक हैं। बदलाव- एक महिला को शैल पुत्री की तरह दृढ़ बनना होगा। महिलाओं को भी अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए सही बातों के लिए आगे आना होगा। शैल पुत्री के इस गुण को जीवन में उतार लिया तो फिर कोई भी महिला को दबा नहीं पाएगा।
ब्रह्मचारिणी से सीखें संघर्ष– मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी मनवांछित फल पाने के लिए कठोर संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता है। ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या के कारण उनका शरीर क्षीण हो गया, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बदलाव- तपस्या कैसी हो, जीवन के लिए उपयोगी होती है। अगर आपको खुद पर विश्वास है तो संघर्ष में जीत आपकी ही होगी। संघर्ष में जीतने के बाद मिली खुशी का कोई सानी नहीं। अगर आप मिसाल बनना चाहती हैं तो संघर्ष करना होगा।
चंद्रघंटा से सीखें वीरता– मां दुर्गा का तीसरा रूप है-चंद्रघंटा। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इनके घंटे की ध्वनि से दानव-दैत्य सब कांपते हैं। इनकी आराधना से मन में वीरता के साथ-साथ सौम्यता व विनम्रता का विकास होता है। यह युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। बदलाव- वीरता का प्रतीक है- देवी चंद्रघंटा। आज के दौर में महिलाओं के मन में अज्ञात भय समाया रहता है। महिला बिना भय के अपने हर काम पूरे करे, तभी वह जीवन में आगे बढ़ सकती है। उसे निर्भया बनकर मुश्किलों का खात्मा करना होगा।
कूष्माण्डा से सीखें रचनात्मकता– मां दुर्गा के चौथे रूप देवी कूष्माण्डा को आदि शक्ति कहा जाता है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था, तब कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड की रचना की। सूर्यलोक में रहने की क्षमता केवल इन्हीं में है। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। बदलाव- जीवन में सफलता के लिए रचनात्मकता जरूरी है। हर महिला देवी कूष्माण्डा से रचनात्मकता का गुण सीख सकती है। रचनात्मकता से जीवन की मुश्किलों को कम किया जा सकता है और कार्यों को आसान बनाया जा सकता है।
स्कंदमाता से सीखें ज्ञान– स्कंदमाता मां दुर्गा का पांचवां रूप हैं। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। कहते हैं कि कालिदास रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत इन्हीं की कृपा से ही रच सके। इन्हें चेतना का निर्माण करने वाली देवी माना जाता है। बदलाव- महिलाएं अपनी बुद्धि, ज्ञान और विवेक के बल पर तेजी से तरक्की कर रही हैं। चाहे पढ़ाई-लिखाई की बात हो या अच्छे कॅरियर की, महिलाओं ने हर क्षेत्र में खुद को बेहतर साबित कर दिखाया है। महिलाएं स्कंदमाता से ज्ञान सीखकर जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ा सकती हैं। जरूरी नहीं कि किताबी ज्ञान पर भी निर्भर रहा जाए, आप अपनी मां या सास से अच्छी चीजें सीख सकती हैं और उन्हें अपने जीवन में लागू कर सकती हैं। इससे आपकी स्किल्स में इजाफा होगा और आपको जीवन के हर क्षेत्र में फायदा मिलेगा।
कात्यायनी से सीखें शोध– मां दुर्गा का छठा रूप है- कात्यायनी। कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने कठिन तपस्या की और पुत्री की इच्छा की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ही मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसीलिए इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। कात्यायनी का विशेष गुण शोधकार्य रहा। बदलाव- किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए जरूरी है कि उस काम या विषय में पूरा शोध किया जाए। अगर महिलाएं अपने जीवन में कुछ बड़ा करना चाहती हैं तो उन्हें शोध को महत्व देना चाहिए। बिना जानकारी के कोई दवा बच्चे को देने या बिना पारंगत हुए कोई पकवान बनाने पर फेल होना तय है। इसलिए पूरी रिसर्च के बाद ही काम को पूरा करने का आत्मविश्वास पैदा हो सकता है। देवी कात्यायनी से यह बात सीखकर महिलाएं जीवन में खुद का एक अलग मुकाम बना सकती है।
कालरात्रि से सीखें अंधकार खत्म करना– मां दुर्गा का सातवां रूप है- कालरात्रि। इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। शरीर का रंग एकदम काला है। कालरात्रि अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति है। यह काल से भी रक्षा करती है। कालरात्रि को दुर्गा के बेहद शक्तिशाली रूपों में से एक माना जाता है। बदलाव- महिलाओं को अपनी अंधकारमय स्थितियों का नाश करने के लिए खुद ही पहल करनी होगी। उन्हें याद रखना होगा कि जो खुद की मदद करता है, ईश्वर भी उन्हीं की मदद करते हैं। कई बार महिलाएं परिवार के दूसरे सदस्यों पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो जाती हैं। इसके कारण बाद में उन्हें काफी परेशान होना पड़ता है। यह स्थिति सुखदायी नहीं है। इसे बदलने के लिए महिलाओं को कोशिश करनी होगी। खुद को मजबूत बनाना होगा और अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा।
महागौरी से सीखें शांति– मां दुर्गा के आठवें रूप महागौरी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसलिए उनका शरीर काला पड़ गया। बाद में भगवान शिव ने गंगा जल से धोकर उन्हें गौर वर्ण कर दिया। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। बदलाव- महिलाएं जीवन में खुश रहना चाहती हैं तो उन्हें जीवन में चल रहे उतार-चढ़ावों के दौरान शांत रहना होगा। महागौरी की तरह शांत मुद्रा में रहकर काम करेंगी तो कोई तनाव नहीं होगा और परिवार में खुशियां आएंगी। शांत रहकर खुद के बारे में विचार करें। अपने सपनों और खुशियों के बारे में विचार करें। जीवन में सब कुछ पाने की लालसा रखने की बजाय संतोष को प्राथमिकता दें। संतोष रहेगा तो जीवन में शांति रहेगी।
सिद्धिदात्री से सीखें देना– सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव को अर्द्घनारीश्वर कहा जाता है। इन्हीं की कृपा से भगवान शिव ने तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। सिद्धिदात्री सबकी इच्छाएं पूरी करती है। बदलाव- महिलाओं को सिद्धिदात्री से सबको खुश रखने की कला सीखनी चाहिए। महिला होने के नाते आपकी भी दात्री की भूमिका होनी चाहिए। सिद्धिदात्री की तरह आपको सबकी इच्छाएं पूरी करके खुद प्रसन्न रहना चाहिए। घर, परिवार, ऑफिस में हर महिला इस काम को आसानी से कर सकती है। महिलाएं सबका खयाल रखें, सबकी इच्छाएं पूरी करें, इसके लिए जरूरी है कि वे खुद भी अपना खयाल करें।

(साभार फेसबुक)

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