Tuesday, November 22, 2016

खाकी वर्दी के किस्से

रिटायर्ड फौजी और पुलिस अफसर किस्सों को दिलचस्प तरीके से सुनाने में पारंगत होते हैं।  मोस्टली ' कई साल पहले जब मैं फलाने जगह पर पोस्टेड था....' की लाइन से शुरू होने वाले किस्से आपको बाँध ही लेते हैं। ऐसा ही एक वाक़या मैं शेयर करती हूँ एक बुज़ुर्ग पुलिस अफसर जो अपने कई साल सीनियर अफसर का किस्सा सुनाया करते थे। मैं शायद उस अंदाज़ में न सुना पाऊं पर पढ़ियेगा ज़रूर, थोड़ा लम्बा हो सकता है।

'.... उस वक़्त आज़मगढ़ में दो विरोधी सांप्रदायिक जुलूसों को 144 ज़ाब्ता फ़ौजदारी लगाये बिना उन अफसर ने अपना कमाल दिखाया था।
आप पाबन्दी लगाएंगे तो हम उल्लंघन करेंगे, ऐसा दोनों पक्ष ने स्पष्ट कर दिया था। ज़ाहिर था जुलुस निकले तो सांप्रदायिक झगड़ा हो कर रहेगा। इसलिए एक दिन पहले वे दिन दहाड़े कई छोटी बड़ी गाड़ियां और तमाम फ़ौज- फाटा लेकर जुलुस के रास्ते पर एक बाज़ार में पहुँचे और लगे फीतों से नाप-जोख करवाने। खुले आम अपने अफसरों से राय -मश्विरा भी करने लगे के यहाँ से गोली चली तो कहाँ तक जायेगी और वहां से चली तब कहाँ तक पंहुचेगी।
फिर उसी ताम-झाम के साथ सिविल हॉस्पिटल गए और सर्जन को बाहर बुला कर घोषणा की कि कल के लिए कोई सौ एक एक्स्ट्रा बेड्स क इंतेज़ाम कर लें क्योंकि दोनों जुलुस निकलेंगे और पुलिस तो गोली चलाएगी ही....!
नतीजा, बाज़ार  तो उसी वक़्त बन्द हुआ और अगले दिन भी बन्द रहा। एक भी जुलुस नही निकला...।'

पुलिसिया सूझ बुझ का ये छोटा सा किस्सा काफी शार्ट एंड सेंसर कर के यहाँ पोस्ट किया है तो बातों की वो खुशबु थोड़ी कम आएगी।
इसी तरह कठिन परिस्थितियों में काबू पाने के अनेक किस्से मैंने सुने हैं। शायद शेयर भी करूँ, पर उनकी ज़ुबानी के बिना वो मिर्च मसाला थोडा स्टोरी को बेस्वाद रखेंगे लेकिन बेफायदा नहीं।

- एक सल्यूट खाकी वर्दी को!!💐👲

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