बिना अच्छा इंसान हुए अच्छा खद्दर वाला/टोपीवाला/खाकीवाला/सफारीवाला (या कोई भी वाला) होने की उम्मीद करना वृथा है।
एक रूपक का प्रयोग करने की अनुज्ञा मिले तो ऐसा कह सकते हैं कि कार्य कुशलता की धरती में जड़ें * हों और आकाश में फैली शाखाएं** , तभी कोई व्यक्ति विटप हरा भरा, स्वस्थ -सबल रह कर समाज वन के विकास में अपना योगदान कर सकता है। मात्र कार्यकुशलता पर आधारित एकांगी विकास भले थोड़ी देर 'ठीकठाक' होता दिख सकता है लेकिन देखते देखते या मुरझाने या तो विकृत होने लगता है।
अपने इर्द गिर्द ऐसे कई उदाहरण देख सकते हैं। वृत्ति कौशल्य और मानवीय चारित्रिक गुणों के मिले जुले विकास के दृष्टांत अपेक्षाकृत कम मिलते हैं पर ज़रूर मिलते हैं।
इन दोनों में से किसको अपना अनुकरणीय/अनुसरणीय/आदर्श माना जाए इसके बारे में कोई शक शुबहा नहीं।
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* साधन सम्पन्नता के खाद पानी से पोषित।
** मानवीय हवा धूप का सेवन करती हुई।
Thursday, November 17, 2016
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